किसने दी नारायण राणे को चुनाव लडने की सलाह?


श्रीरामचरितमानस में एक चौपाई है-

"जानबूझि जे संग्रह करिहि
कहो उमा ते काहे न मरहि"

नारायण राणे की हार के बाद अब इस सवाल का विश्लेषण हो रहा है कि आखिर वे क्यों हारे, लेकिन मेरी नजर में उससे बडा सवाल ये है कि आखिर उन्होने ये चुनाव ही क्यों लडा? किसीकी सलाह थी या फिर कोई मजबूरी? राणे ने क्यों अपने सियासी करियर के साथ एक बडा जुआं खेला?

मुंबई के उपनगर बांद्रा पूर्व की विधानसभा सीट, महाराष्ट्र की सत्ताधारी पार्टी शिवसेना का गढ रही है। बीते विधानसभा चुनाव में यहां से शिवसेना के बाला सावंत विधायक चुने गये थे। चंद दिनों पहले वे अचानक चल बसे, जिसके बाद यहां उपचुनाव घोषित हुआ। चुनाव में शिवसेना ने बाला सावंत की पत्नी तृप्ति सावंत को टिकट दिया।नारायण राणे जिस कांग्रेस पार्टी के उम्मीदवार थे, उसकी हालत साल 2014 के विधानसभा चुनाव में इस सीट पर काफी खराब थी। करीब 12 हजार वोट पाकर कांग्रेस यहां चौथे नंबर पर थे। चुनाव जीतने वाले शिवसेना के दिवंगत उम्मीदवार बाला सावंत को 41388 वोट मिले थे, दूसरे नंबर पर बीजेपी थी जिसे 25791 वोट मिले और तीसरे नंबर पर ओवैसी बंधुओं की पार्टी आल इंडिया मजलिस इत्तेहादुल मुसलमीन थी जिसने 23 976 वोट जुटाये। ऐसे में राणे को क्यों लगा कि इस चुनाव में अपनी कांग्रेस पार्टी को वे चौथे नंबर से पहले नंबर पर पहुंचा पायेंगे।

कांग्रेस की प्रतिदवंदवी एनसीपी ने तो राणे के समर्थन में अपना उम्मीदवार नहीं उतारा, लेकिन दूसरी तरफ बीजेपी और राज ठाकरे की पार्टी एमएनस ने भी इस बार अपने उम्मीदवार नहीं उतारे। इसका फायदा शिवसेना को मिला और राणे के लिये इसने मुकाबला और कडा कर दिया।

इस सीट पर 80 हजार मुसलिम वोट हैं, जबकि 50 हजार दलित वोट हैं, लेकिन कांग्रेस के इन पारंपरिक वोटों को हासिल करने के लिये एआईएमआईएम जी तोड कोशिश की। हैद्राबाद के ओवैसी बंधु यानी की पार्टी के अध्यक्ष असददुद्दीन ओवैसी और उनके छोटे भाई अकबरउद्दीन ओवैसी ने बांद्रा में ही अपना डेरा जमा लिया था। दोनो पूरी आक्रमकता के साथ अपने उम्मीदवार रहबर खान के लिये चुनाव प्रचार कर रहे थे। राणे उनके पहले निशाने पर थे।

शिवसेना भी अपने प्रचार में ये कहकर राणे पर निशाना साध रही थी कि वे इस इलाके से बाहर के हैं और स्थानीय नागरिकों की समस्याएं नहीं समझ सकेंगे।

62 साल के नारायण राणे एक मंझे हुए राजनेता हैं, सियासी खेल के अनुभवी खिलाडी हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या सोच कर उन्होने यहां से चुनाव लडने का जुआं खेला जब राजनीति में उनका बुरा दौर चल रहा है। पहली नजर में ही ये सीट कांग्रेस के लिये आसान सीट नजर नहीं आती। राणे बीता विधानसभा चुनाव कोंकण की कुडाल सीट से हार गये। वो अपने बडे बेटे निलेश को भी बीता लोकसभा चुनाव जीता नहीं सके। अशोक चव्हाण को महाराष्ट्र कांग्रेस और संजय निरूपम को मुंबई कांग्रेस का अध्यक्ष चुने जाते वक्त भी उन्हें नजरअंदाज किया गया।

ये चुनाव नारायण राणे के लिये भी अहम था और कांग्रेस पार्टी के लिये भी। राणे को लगा था कि इस चुनाव को जीतकर वे अपने सियासी करियर में नई जान डाल देंगे। कांग्रेस ने भी सोचा था कि राणे की शक्ल में पार्टी का कोई आक्रमक प्रतिनिधि विधानसभा में जायेगा जो कि फिलहाल नहीं है...लेकिन चुनाव नतीजों ने सब पर पानी फेर दिया। इन नतीजों ने भले ही कांग्रेस को कुछ मिला न हो, लेकिन उसका कुछ गया भी नहीं। कांग्रेस की स्थिति जस की तस है। सवाल ये है अब आगे क्या करेंगे राणे?


Comments

Popular posts from this blog

#Bombayphile Telgi Scam: Crime Reporting In Mumbai 20 Years Ago

नागरिक बनो, भक्त नहीं!

#Bombayphile : The Cosmopolitanism of Mumbai And Its Aberrations