इंटरनेट के जरिये लोगों को ठगने वाले नाईजीरियाई बदमाशों ने अब निकाला है ठगी का नया तरीका। वे आपका ईमेल अकाउंट हैक करके आपकी एड्रेस बुक से तमाम लोगों को संदेश भेजते हैं कि आप विदेश में हैं, आपका बटुआ गुम हो गया है और मुसीबत से बचाने के लिये आपको एक बडी रकम ऑनलाईन भेजी जाये। जिसने भी इस संदेश पर यकीन किया उसके बैंक बैलेंस को जीरो होते देर न लगी। इन बदमाशों ने हाल ही में मालेगांव बम धमाके की आरोपी साध्वी प्रज्ञा सिंह और मराठी अखबार लोकसत्ता के संपादक कुमार केतकर के ईमेल अकाउंट हैक करके भी इसी तरह के संदेश भेजे।
एडवोकेट गणेश सोवानी फोन पर अपने दोस्तों और शुभचिंतकों को समझाते समझाते थक गये हैं कि वे भारत में ही हैं, लंदन में नहीं और न ही उन्हें पैसों की कोई जरूरत है। दरअसल मालेगांव बम धमाके की आरोपी साध्वी प्रज्ञा सिंह के वकील सोवानी का ईमेल अकाउंट किसी ने हैक कर लिया। हैक करने के बाद बदमाशों ने सोवानी के अकाउंट में जितने भी लोगो के ई मेल एड्रेस थे उन सब पर एक ईमेल भेजा। ईमेल में लिखा गया था – “ कैसे हैं आप। उम्मीद है आप और आपके परिवार में सब ठीक है। माफ कीजिये मैने आपको एक ट्रिप के लिये इंग्लैंड के सफर के बारे में नहीं बताया। मुझे आपसे एक मदद चाहिये क्योंकि मैं होटल जाते वक्त अपना पर्स भूल आया हूं। कृपया मुझे 3500 डॉलर्स का एक सॉफ्ट लोन दे दें ताकि मैं होटल के बिल चुका सकूं और वापस घर लौट सकूं। अगर आप मदद कर सकते हैं तो बताइये ताकि मैं पैसे किस तरह भिजवाने हैं उसका ब्यौरा भेज सकूं”
सोवानी ने तुरंत इसकी शिकायत ठाणे पुलिस की साईबर क्राईम सेल से कर दी। तहकीकात में पता चला कि दरअसल इस तरह के ई मेल कुछ नाईजीरियाई ठगों की ओर से रोजाना लाखों की तादाद में भेजे जा रहे हैं। ईमेल पाने वाला अगर मदद करने का इरादा रखता है तो उसे किसी विदेशी बैंक का अकाउंट नंबर दिया जाता है और उसमें ऑनलाईन पैसे ट्रांसफर करने को कहा जाता है। सोवानी के अकाउंट से ईमेल भेजने वालों का इरादा न केवल उनके शुभचिंतकों से 3500 डॉलर की रकम हासिल करना था बल्कि वे सोवानी के शुभचिंतकों का ऑनलाईन अकाउंट नंबर और पासवर्ड भी जान लेते। बेचारा शुभचिंतक सोवानी की मदद के इरादे से 3500 डॉलर तो अपनी मर्जी से देता ही उसके खाते की बाकी की रकम पर भी नाईजीरियाई ठग हाथ साफ कर देते।
गणेश सोवानी की तरह ही मराठी अखबार लोकसत्ता के संपादक कुमार केतकर का भी किसी ने ईमेल अकाउंट हैक कर लिया। केतकर के ईमेल से उनके तमाम शुभचिंतकों को संदेश भेजा गया कि वे विदेश में फंस गये हैं और उन्हें पैसों की जरूरत है। उन्होने भी साईबर क्राईम सेल के पास शिकायत दर्ज कराई है।
इस तरह के मामलों की तहकीकात भी टेढी खीर है क्योंकि आरोपी किसी दूसरे देश में होते हैं, बैंक अकाउंट किसी दूसरे देश का होता है और इसमें कई विदेशी एजेंसियों की मदद लगती है।
जानकारों के मुताबिक इस तरह के फ्रॉड से बचने का एकमात्र तरीका है अपने ईमेल पासवर्ड की सुरक्षा। अगर आप साईबर कैफे किसी ऐसे कंप्यूटर पर अपना ईमेल चैक कर रहे हैं जिसपर कई लोग काम करते हैं तो सावधान रहिये। संदेहास्पद ईमेल के जरिये भी अगर आपसे आपका पासवर्ड मांगा जा रहा है तो न दें।
ईमेल ने हमारी जिंदगी आसान और सुविधाजनक तो बनाई है, लेकिन इस दुनिया में कई ऐसे लुटेरे भी घूम रहे हैं जो कि आपकी जरा सी लापरवाही पर आपको कंगाल बना सकते हैं।
Wednesday, 27 January 2010
Tuesday, 12 January 2010
मुंबई में अब कोई नहीं एनकाउंटर स्पेशलिस्ट
प्रदीप शर्मा की गिरफ्तारी के बाद अब मुंबई पुलिस में कोई एनकाउंटर स्पेशलिस्ट अफसर नहीं बचा है। मुंबई पुलिस को अपने जिन एनकाउंटर स्पेशलिस्टों पर कभी फख्र हुआ करता था वही आज उसकी बदनामी के सबसे बडे कारण बने हैं। शर्मा के अलावा हर एनकाउंटर स्पेशलिसट अफसर किसी न किसी आपराधिक मामले में फंसकर फर्स से बाहर हो गया।
विजय सालस्कर: 26-11-2008 को मुंबई पर हुए आतंकी हमले में शहीद हुए विजय सालस्कर ही एकमात्र ऐसे एनकाउंटर स्पेशलिस्ट अफसर थे जिनके खिलाफ उनकी मौत के वक्त कोई बडा आपराधिक मामला नहीं चल रहा था। फर्जी एनकाउंटरों के आरोप सालस्कर पर भी लगे थे, लेकिन गिरफ्तारी की नौबत कभी नहीं आई थी....लेकिन बाकी एनकाउंटर स्पेशलिस्ट इतने खुशनसीब नहीं निकले।
दया नायक: विजय सालस्कर और प्रदीप शर्मा के बाद एनकाउंटर स्पेशलिस्टों पुलिसवालों की नस्ल में सबसे बडा नाम था दया नायक। साल 2005 में नायक और उनके 2 दोस्तों को आय से ज्यादा संपत्ति रखने का मामले में एंटी करप्शन ब्यूरो ने गिरफ्तार कर लिया। गिरफ्तारी के बाद से करीब 80 एनकाउंटर करने वाले दया नायक फिलहाल स्सपेंड कर दिये गये।
एसीबी ने नायक को गिरफ्तार तो कर लिया लेकिन उनके खिलाफ कोई चार्जशीट दायर नहीं की। महाराष्ट्र के पूर्व डीजीपी एस.एस.विर्क भी अपने रिटायरमेंट से पहले नायक को क्लीन चिट दे गये। नायक की बहाली होनी अभी बाकी है और उनके खिलाफ अब एक विभागीय जांच भी की
सचिन वाजे: दया नायक के अलावा प्रदीप शर्मा के दूसरे खास साथी थे सचिन वाजे। साल 2004 में सीआईडी ने सचिन वाजे को इस आरोप में गिरफ्तार कर लिया कि उन्होने हिरासत में बाकी पुलिस कर्मियों के साथ मिलकर घाटकोपर बमकांड के आरोपी ख्वाजा यूनुस की हत्या की साजिश रची और अपने गुनाह को छुपाने के लिये यूनुस के हिरासत से फरार होने की झूठी कहानी बनाई। ये मामला अब भी अदालत में चल रहा है।सस्पेंड होने के बाद सचिन वाजे ने पुलिस सेवा छोडने का ऐलान किया और वे अब शिवसेना से जुड गये हैं।
रवींद्र आंग्रे: एनकाउंटर स्पेशलिस्टों में एक और बडा नाम है रवींद्र आंग्रे का। आंग्रे ने मुंबई और ठाणे में कई मंचेकर गिरोह, चोटा राजन के गिरोह और अमर नाईक के गिरोह के कई बडे शूटरों कोएनकाउंटर में मारा। आंग्रे ठाणे पुलिस के सबसे तेज तर्रार पुलिस अधिकारी माने जाते थे, लेकिन साल 2007 में एक बिल्डर ने उनके खिलाफ धमाकाने और जबरन उगाही की शिकायत दर्ज कराई। बिल्डर की शिकायत पर आंग्रे को गिरफ्तार कर लिया गया। आंग्रे को करीब सालभर का वक्त जेल की सलाखों के पीछे गुजारना पडा। आंग्रे रिहा तो हो गये हैं, लेकिन उनका खिलाफ दर्जे आपराधिक मामला अब भी अदालत में चल रहा है और ये तय नहीं कि वे फिर से पुलिस महकमें में लौट पायेंगे या नहीं
चाहे वो प्रदीप शर्मा हों, दया नायक हो, सचिन वाजे हा या फिर रवींद्र आंग्रे.. ..इन सभी अफसरों ने मिलकर पिछले 20 सालों में करीब 500 कथित गैंगस्टरों को यमलोक पहुंचाया और करीब 3 बजार आरोपियों को सलाखों के पीछे भेजा...लेकिन जानकारों का मानना है कि अंडरवर्लड से लडाई लडते लडते ये अपनी मर्यादाएं भूल गये और यही इनके मौजूदा हश्र का कारण है।
इन अफसरों ने अंडरवर्लड के खिलाफ लडाई लड कर अपनी पहचान बनाई थी...लेकिन अब मुंबई पुलिस की प्राथमिकता अंडरवर्लड नहीं बल्कि आतंकवाद है। इसी वजह से आला पुलिस अफसरों की नजर में इन एनकाउंटर स्पेशलिस्टों की अहमियत भी कम हुई है।
विजय सालस्कर: 26-11-2008 को मुंबई पर हुए आतंकी हमले में शहीद हुए विजय सालस्कर ही एकमात्र ऐसे एनकाउंटर स्पेशलिस्ट अफसर थे जिनके खिलाफ उनकी मौत के वक्त कोई बडा आपराधिक मामला नहीं चल रहा था। फर्जी एनकाउंटरों के आरोप सालस्कर पर भी लगे थे, लेकिन गिरफ्तारी की नौबत कभी नहीं आई थी....लेकिन बाकी एनकाउंटर स्पेशलिस्ट इतने खुशनसीब नहीं निकले।
दया नायक: विजय सालस्कर और प्रदीप शर्मा के बाद एनकाउंटर स्पेशलिस्टों पुलिसवालों की नस्ल में सबसे बडा नाम था दया नायक। साल 2005 में नायक और उनके 2 दोस्तों को आय से ज्यादा संपत्ति रखने का मामले में एंटी करप्शन ब्यूरो ने गिरफ्तार कर लिया। गिरफ्तारी के बाद से करीब 80 एनकाउंटर करने वाले दया नायक फिलहाल स्सपेंड कर दिये गये।
एसीबी ने नायक को गिरफ्तार तो कर लिया लेकिन उनके खिलाफ कोई चार्जशीट दायर नहीं की। महाराष्ट्र के पूर्व डीजीपी एस.एस.विर्क भी अपने रिटायरमेंट से पहले नायक को क्लीन चिट दे गये। नायक की बहाली होनी अभी बाकी है और उनके खिलाफ अब एक विभागीय जांच भी की
सचिन वाजे: दया नायक के अलावा प्रदीप शर्मा के दूसरे खास साथी थे सचिन वाजे। साल 2004 में सीआईडी ने सचिन वाजे को इस आरोप में गिरफ्तार कर लिया कि उन्होने हिरासत में बाकी पुलिस कर्मियों के साथ मिलकर घाटकोपर बमकांड के आरोपी ख्वाजा यूनुस की हत्या की साजिश रची और अपने गुनाह को छुपाने के लिये यूनुस के हिरासत से फरार होने की झूठी कहानी बनाई। ये मामला अब भी अदालत में चल रहा है।सस्पेंड होने के बाद सचिन वाजे ने पुलिस सेवा छोडने का ऐलान किया और वे अब शिवसेना से जुड गये हैं।
रवींद्र आंग्रे: एनकाउंटर स्पेशलिस्टों में एक और बडा नाम है रवींद्र आंग्रे का। आंग्रे ने मुंबई और ठाणे में कई मंचेकर गिरोह, चोटा राजन के गिरोह और अमर नाईक के गिरोह के कई बडे शूटरों कोएनकाउंटर में मारा। आंग्रे ठाणे पुलिस के सबसे तेज तर्रार पुलिस अधिकारी माने जाते थे, लेकिन साल 2007 में एक बिल्डर ने उनके खिलाफ धमाकाने और जबरन उगाही की शिकायत दर्ज कराई। बिल्डर की शिकायत पर आंग्रे को गिरफ्तार कर लिया गया। आंग्रे को करीब सालभर का वक्त जेल की सलाखों के पीछे गुजारना पडा। आंग्रे रिहा तो हो गये हैं, लेकिन उनका खिलाफ दर्जे आपराधिक मामला अब भी अदालत में चल रहा है और ये तय नहीं कि वे फिर से पुलिस महकमें में लौट पायेंगे या नहीं
चाहे वो प्रदीप शर्मा हों, दया नायक हो, सचिन वाजे हा या फिर रवींद्र आंग्रे.. ..इन सभी अफसरों ने मिलकर पिछले 20 सालों में करीब 500 कथित गैंगस्टरों को यमलोक पहुंचाया और करीब 3 बजार आरोपियों को सलाखों के पीछे भेजा...लेकिन जानकारों का मानना है कि अंडरवर्लड से लडाई लडते लडते ये अपनी मर्यादाएं भूल गये और यही इनके मौजूदा हश्र का कारण है।
इन अफसरों ने अंडरवर्लड के खिलाफ लडाई लड कर अपनी पहचान बनाई थी...लेकिन अब मुंबई पुलिस की प्राथमिकता अंडरवर्लड नहीं बल्कि आतंकवाद है। इसी वजह से आला पुलिस अफसरों की नजर में इन एनकाउंटर स्पेशलिस्टों की अहमियत भी कम हुई है।
Monday, 11 January 2010
अंडरवर्लड : गोलियों की जुबान से गालिब की जुबान तक
गोलियों, गालियों और धमकी की जुबान बोलने वाली डी कंपनी का एक गुर्गा इन दिनों बोल रहा है शेर-ओ-शायरी और कविताओं की जुबान। दाऊद इब्राहिम गिरोह से ताल्लुक रखने वाले इस शख्स ने जेल की सलाखों के पीछे कैद रहकर तैयार किया है एक कविता संग्रह। डॉन के गुर्गे ने शायरियों और कविताओं के जरिये नैनो कार और जेल की जिंदगी से लेकर रोमांस और कॉमेडी तक पर अपनी कलम चलाई है।
अंडरवर्लड की जुबान यानी कि मौत की जुबान, धमकी की जुबान, गालियों की जुबान...लेकिन अंडरवर्लड से जुडा होने का आरोपी ये शख्स इन दिनों बोल रहा है मिर्जा गालिब की जुबान...शेर-ओ-शायरी की जुबान। ये शख्स है दाऊद इब्राहिम गिरोह का कथित सदस्य रियाज सिद्धिकी। एक कविता इसने अपनी जेल की जिंदगी पर लिखी है-
तकदीर का देखो खेल कि भईया आ गये हम तो जेल
जेल के किस्से क्या क्या बताएं, जेल तो भईया जेल
बडे बडो की यहां पर आके हो जाती है बुद्धि फेल
एक बार जो हत्थे चढा इसके फिर पता न कब होगी बेल
तकदीर का देखो खेल कि भईया आ गये हम तो जेल
सलाखों के पीछे की अपनी जिंदगी को तो रियाज ने इस कविता के जरिये तो बयां किया ही है, जेल के बाहर की जिंदगी पर भी उसने कविताएं लिखीं हैं जैसे कि नैनो कार लांच के वक्त लिखी ये कविता-
देख जमाना बदला देख, टाटा का निर्माण तो देख
इस महंगाई के मौसम में, एक लाख की नैनो देख
बरसों से ये ख्वाब था सबका, ख्वाब हुआ अब पूरा देख
ख्वाबों की ताबीर है नैनो, एक नया फिर ख्वाब तो देख
दाऊद के इस गुर्गे रियाज ने रोमांस पर भी अपनी कलम आजमाई है जैसे “याद में उसकी” नाम की ये कविता-
हम कैद में भी नगमा गर हैं याद में उसकी
बहला रहे हैं दिल को फक्त याद में उसकी
हर सुबह नई आस, नई सोच, नया जोश
हर शाम बुझा दिल है फकत याद में उसकी
रियाज सिद्धिकी 1993 के मुंबई बमकांड में टाडा का आरोपी है। संजय दत्त को जो ए.के.56 राईफल अबू सलेम ने कथित तौर पर दी थी उस वक्त रियाज सिद्धिकी भी साथ था। मई 2003 में दुबई से डीपोर्ट होने के बाद उसे सीबीआई ने गिरफ्तार कर लिया था। तब से रियाज आर्थर रोड जेल में है और वही अक्सर कविताएं लिखता है।
रियाज ने जेल से अपनी रिहाई के इंतजार में भी “कैदी परिंदे” नाम की एक कविता लिखी है-
कैदी परिंदे पिंजरे में ये गाते हैं
कब छूटेंगे मौसम बीतते जाते हैं
फिरसे टूट कर रोने की रूत आई है
फिरसे दिलों के घाव ये बढते जाते हैं
वैसे डी कंपनी का शेरो शायरी से लगाव पहले भी रहा है। दाऊद का मृत भाई नूरा फिल्मों के लिये गाने लिखता था। दाऊद का दाहिना हाथ छोटा शकील ने भी भले ही अपने शूटरों की गोलियों से कईयों को ढेर करवाया हो, लेकिन अपनी माशूकाओं को खुश करने के लिये वो गालिब की भाषा यानी शेरो शायरी का इस्तेमाल करता है..
अंडरवर्लड की जुबान यानी कि मौत की जुबान, धमकी की जुबान, गालियों की जुबान...लेकिन अंडरवर्लड से जुडा होने का आरोपी ये शख्स इन दिनों बोल रहा है मिर्जा गालिब की जुबान...शेर-ओ-शायरी की जुबान। ये शख्स है दाऊद इब्राहिम गिरोह का कथित सदस्य रियाज सिद्धिकी। एक कविता इसने अपनी जेल की जिंदगी पर लिखी है-
तकदीर का देखो खेल कि भईया आ गये हम तो जेल
जेल के किस्से क्या क्या बताएं, जेल तो भईया जेल
बडे बडो की यहां पर आके हो जाती है बुद्धि फेल
एक बार जो हत्थे चढा इसके फिर पता न कब होगी बेल
तकदीर का देखो खेल कि भईया आ गये हम तो जेल
सलाखों के पीछे की अपनी जिंदगी को तो रियाज ने इस कविता के जरिये तो बयां किया ही है, जेल के बाहर की जिंदगी पर भी उसने कविताएं लिखीं हैं जैसे कि नैनो कार लांच के वक्त लिखी ये कविता-
देख जमाना बदला देख, टाटा का निर्माण तो देख
इस महंगाई के मौसम में, एक लाख की नैनो देख
बरसों से ये ख्वाब था सबका, ख्वाब हुआ अब पूरा देख
ख्वाबों की ताबीर है नैनो, एक नया फिर ख्वाब तो देख
दाऊद के इस गुर्गे रियाज ने रोमांस पर भी अपनी कलम आजमाई है जैसे “याद में उसकी” नाम की ये कविता-
हम कैद में भी नगमा गर हैं याद में उसकी
बहला रहे हैं दिल को फक्त याद में उसकी
हर सुबह नई आस, नई सोच, नया जोश
हर शाम बुझा दिल है फकत याद में उसकी
रियाज सिद्धिकी 1993 के मुंबई बमकांड में टाडा का आरोपी है। संजय दत्त को जो ए.के.56 राईफल अबू सलेम ने कथित तौर पर दी थी उस वक्त रियाज सिद्धिकी भी साथ था। मई 2003 में दुबई से डीपोर्ट होने के बाद उसे सीबीआई ने गिरफ्तार कर लिया था। तब से रियाज आर्थर रोड जेल में है और वही अक्सर कविताएं लिखता है।
रियाज ने जेल से अपनी रिहाई के इंतजार में भी “कैदी परिंदे” नाम की एक कविता लिखी है-
कैदी परिंदे पिंजरे में ये गाते हैं
कब छूटेंगे मौसम बीतते जाते हैं
फिरसे टूट कर रोने की रूत आई है
फिरसे दिलों के घाव ये बढते जाते हैं
वैसे डी कंपनी का शेरो शायरी से लगाव पहले भी रहा है। दाऊद का मृत भाई नूरा फिल्मों के लिये गाने लिखता था। दाऊद का दाहिना हाथ छोटा शकील ने भी भले ही अपने शूटरों की गोलियों से कईयों को ढेर करवाया हो, लेकिन अपनी माशूकाओं को खुश करने के लिये वो गालिब की भाषा यानी शेरो शायरी का इस्तेमाल करता है..
Monday, 4 January 2010
डॉन के पालतू...
अंडरवर्लड डॉन छोटा राजन के गुर्गों के साथ पार्टी में रंगरलियां मनाने वाले एसीपी प्रकाश वाणी पर पहले भी गैंगस्टरों से रिश्तों के आरोप लग चुके हैं और उनपर कार्रवाई भी हुई है। इस बार वाणी फिर एक बार पकडे जाने पर निलंबित हुए हैं। वाणी पर तो कार्रवाई हुई है, लेकिन वाणी की तरह ही महाराष्ट्र के पुलिस महकमें और दूसरी एजेंसियों के कई लोग वर्दी में रहकर अंडरवर्लड की काली दुनिया के लिये काम करते आये हैं।
एसीपी प्रकाश वाणी की वर्दी रहेगी या जायेगी ये उस जांच की रिपोर्ट के बाद तय होगा जो कि मुंबई पुलिस की क्राईम ब्रांच कर रही है। वाणी पर 25 दिसंबर को चेंबूर के एक क्लब में छोटा राजन के गुर्गे डी.के राव और फरीद तनाशा जैसे गु्र्गों के साथ शराब पीकर नाचने का आरोप है। वैसे अंडरवर्लड के साथ रिश्तों को लेकर वाणी पर लगा ये कोई पहला आरोप नहीं है। 1998 में मुंबई के त्तकालीन पुलिस कमिश्नर रोनी मेंडोंसा ने भी अंडरवर्लड से वाणी के रिश्तों की शिकायत मिलने पर उनका तबादला मुंबई के बाहर करवा दिया था। उस वक्त इंस्पेक्टर रैंक के वाणी के तबादले का आदेश तो आ गया ,लेकिन वाणी राजनीतिक दबाव डलवा कर संयुक्त राष्ट्र के मिशन के लिये कोसोवो चले गये। जब वाणी की वापसी हुई तो उनपर लगे आरोपो को नजरअंदाज करते हुए उन्हें एसीपी बना दिया गया।
गौर करने वाली बात है कि क्राईम ब्रांच सिर्फ इस बात की जांच कर रही है कि एसीपी प्रकाश वाणी उस पार्टी में थे या नहीं। ये जांच कई अहम सवालों को नजरअंदाज कर रही है जैसे कि एसीपी प्रकाश वाणी के छोटा राजन गिरोह से रिश्ते किस तरह के रहे हैं। गिरोह के लिये उसने क्या क्या काम किये..गिरोह के कितने दुश्मनों को फर्जी मामलों में फंसाया...गिरोह के कितने शूटरों के मामले कमजोर करवाये और इसके एवज में छोटा राजन का गिरोह प्रकाश वाणी को कितने पैसे देता था। वैसे राजन ही नहीं डॉन दाऊद इब्राहिम ने भी कई पुलिसकर्मियों को अपना पालतू बना रखा था और उनका खूब इस्तेमाल भी किया।
दाऊद इब्राहिम ने पैसों के दम पर मुंबई पुलिस के हथियारखाने में काम करने वाले एक कांस्टेबल राजेश इगवे उर्फ राजू को अपने गिरोह में शामिल कर लिया था। इगवे को एके-47 जैसे हथियार चलाने आते थे। दाऊद ने इगवे का इस्तेमाल न केवल अपने शूटरों को संजय गांधी नेशनल पार्क में ट्रेनिंग देने के लिये करता था, बल्कि उसे एक मिशन भी सौंप रखा था। ये मिशन था शिवसेना प्रमुख बाल ठाकरे, मुंबई पुलिस के पूर्व कमिश्नर एम एन सिंह और ज्वाइंट कमिश्नर की हत्या का... पर इससे पहले कि इगवे अपने मिशन में कामियाब हो पाता 17 नवंबर 1995 को पुलिस के साथ हुई मुठभेड में वो मारा गया। 12 मार्च 1993 को मुंबई में हुए बम धमाकों के लिये भी आरडीएक्स भी दाऊद गिरोह ने 5 पुलिसकर्मियों और एक कस्टम अधिकारी एसएन थापा को रिश्वत देकर उतरवाया था। इस मामले में मुंबई की विशेष टाडा अदालत ने पांचो पुलिसकर्मियों और थापा को दोषी ठहराते हुए सजा सुनाई थी।
मुंबई पुलिस का ध्येय वाक्य है सदरक्षणाय, खल निग्रहणाय यानी अच्छों की रक्षा और बुराई का खात्मा... लेकिन पुलिस वाले जब खुद ही गुनहगारों के कंध से कंधा मिलाकर चलते नजर आयें तो ये ध्येय वाक्य किसी मजाक से ज्यादा कुछ नहीं है।
एसीपी प्रकाश वाणी की वर्दी रहेगी या जायेगी ये उस जांच की रिपोर्ट के बाद तय होगा जो कि मुंबई पुलिस की क्राईम ब्रांच कर रही है। वाणी पर 25 दिसंबर को चेंबूर के एक क्लब में छोटा राजन के गुर्गे डी.के राव और फरीद तनाशा जैसे गु्र्गों के साथ शराब पीकर नाचने का आरोप है। वैसे अंडरवर्लड के साथ रिश्तों को लेकर वाणी पर लगा ये कोई पहला आरोप नहीं है। 1998 में मुंबई के त्तकालीन पुलिस कमिश्नर रोनी मेंडोंसा ने भी अंडरवर्लड से वाणी के रिश्तों की शिकायत मिलने पर उनका तबादला मुंबई के बाहर करवा दिया था। उस वक्त इंस्पेक्टर रैंक के वाणी के तबादले का आदेश तो आ गया ,लेकिन वाणी राजनीतिक दबाव डलवा कर संयुक्त राष्ट्र के मिशन के लिये कोसोवो चले गये। जब वाणी की वापसी हुई तो उनपर लगे आरोपो को नजरअंदाज करते हुए उन्हें एसीपी बना दिया गया।
गौर करने वाली बात है कि क्राईम ब्रांच सिर्फ इस बात की जांच कर रही है कि एसीपी प्रकाश वाणी उस पार्टी में थे या नहीं। ये जांच कई अहम सवालों को नजरअंदाज कर रही है जैसे कि एसीपी प्रकाश वाणी के छोटा राजन गिरोह से रिश्ते किस तरह के रहे हैं। गिरोह के लिये उसने क्या क्या काम किये..गिरोह के कितने दुश्मनों को फर्जी मामलों में फंसाया...गिरोह के कितने शूटरों के मामले कमजोर करवाये और इसके एवज में छोटा राजन का गिरोह प्रकाश वाणी को कितने पैसे देता था। वैसे राजन ही नहीं डॉन दाऊद इब्राहिम ने भी कई पुलिसकर्मियों को अपना पालतू बना रखा था और उनका खूब इस्तेमाल भी किया।
दाऊद इब्राहिम ने पैसों के दम पर मुंबई पुलिस के हथियारखाने में काम करने वाले एक कांस्टेबल राजेश इगवे उर्फ राजू को अपने गिरोह में शामिल कर लिया था। इगवे को एके-47 जैसे हथियार चलाने आते थे। दाऊद ने इगवे का इस्तेमाल न केवल अपने शूटरों को संजय गांधी नेशनल पार्क में ट्रेनिंग देने के लिये करता था, बल्कि उसे एक मिशन भी सौंप रखा था। ये मिशन था शिवसेना प्रमुख बाल ठाकरे, मुंबई पुलिस के पूर्व कमिश्नर एम एन सिंह और ज्वाइंट कमिश्नर की हत्या का... पर इससे पहले कि इगवे अपने मिशन में कामियाब हो पाता 17 नवंबर 1995 को पुलिस के साथ हुई मुठभेड में वो मारा गया। 12 मार्च 1993 को मुंबई में हुए बम धमाकों के लिये भी आरडीएक्स भी दाऊद गिरोह ने 5 पुलिसकर्मियों और एक कस्टम अधिकारी एसएन थापा को रिश्वत देकर उतरवाया था। इस मामले में मुंबई की विशेष टाडा अदालत ने पांचो पुलिसकर्मियों और थापा को दोषी ठहराते हुए सजा सुनाई थी।
मुंबई पुलिस का ध्येय वाक्य है सदरक्षणाय, खल निग्रहणाय यानी अच्छों की रक्षा और बुराई का खात्मा... लेकिन पुलिस वाले जब खुद ही गुनहगारों के कंध से कंधा मिलाकर चलते नजर आयें तो ये ध्येय वाक्य किसी मजाक से ज्यादा कुछ नहीं है।
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