जापान का जज्बा: भाग-1

26 नवंबर 2008 के मुंबई पर हुए आतंकी हमले के बाद अब ये दूसरा ऐसा मौका था जब हम उस दिशा की ओर निकले थे जहां से लोग अपनी जान बचाकर भाग रहे थे। शुक्रवार 12 मार्च 2011 को जापान में भूकंप और सुनामी ने कहर बरपाया और उसके बाद जब हालात और भी बिगडते गये तो रविवार को हमारे चैनल ने भी वहां एक टीम भेजने का फैसला किया। सोमवार के दिन मैने जापानी कंसुलेट में वीजा के लिये अर्जी दे दी। वीजा चंद घंटों में ही बिना किसी परेशानी के और ज्यादा कागजात पेश किये बिना ही हमें मिल गया। दरअसल जापान सरकार ने विदेश में मौजूद अपने तमाम अधिकारियों को निर्देश दे रखा था कि अगर कोई पत्रकार जापान आना चाहता है तो उसे जल्द से जल्द वीजा दिया जाये ताकि जापान के हालातों के बारे में दुनिया को ज्यादा से ज्यादा जानकारी मिल सके। मैं 16 मार्च को जापान की राजधानी टोकियो पहुंचा और अगले 5 दिनों तक जापान में ही रहा। इन 5 दिनों में मैने जो देखा, जो महसूस किया, जिन लोगों से बातचीत की उसने मेरे मन में जापान के प्रति जागी स्वाभाविक सहानुभूति से ज्यादा इस देश के लिये आदर पैदा किया। चाहे संकट के वक्त में हिम्मत दिखाते हुए आशावादी रहने की बात हो, चाहे हादसों से निपटने की तकनीक की बात हो या फिर किसी की मदद करने का जज्बा हो, जापान ने दिल जीत लिया।

हादसे में भी हिम्मत और अनुशासन का प्रदर्शन-
वैसे तो जापान में भूकंप आना कोई असामान्य बात नहीं है लेकिन 12 मार्च 2011 को जापान में आया भूंकप जापान के ताजा इतिहास में आया सबसे बडा भूकंप था। रिक्टर पैमाने पर 9 की तीव्रता से आये इस भूकंप से उपजी सुनामी ने सेंदई और मियागी जैसे जापान के उत्तर पूर्वी इलाके को तो नर्क में तब्दील कर ही दिया लेकिन साथ साथ टोकियो को भी हिलाकर रख दिया। सभी फोन लाईनें बंद हो गईं।मुंबई की तरह ही टोकियो में भी लोकल ट्रेने वहां की लाईफ लाईन मानी जातीं हैं। करीब 80 लाख लोग टोकियो में घर से दफ्तर के बीच का सफर लोकल ट्रेनो से तय करते हैं। जब भूकंप आया तो शहर की सभी लोकल ट्रेने भी बंद हो गईं। कहीं बिजली के खंभे उखड गये तो कहीं पटरी जगह से खिसक गई। शहर थम गया...लेकिन ऐसी हालत में भी टोकियो निवासियों ने अनुशासनहीनता नहीं दिखाई, कोई अफरा तफरी नहीं मचाई और न ही किसी तरह का हंगामा किया। लोकल ट्रेन से सफर करने वाले तमाम मुसाफिर अब सडक पर आ गये...लेकिन बसों और टैक्सियों के लिये सभी ने कतार लगाई..कोई धक्का मुक्की नहीं..गाली गलौच नहीं। हर कोई एक दूसरे की सुविधा का ध्यान रख रहा था।पूरा शहर एक परिवार की तरह पेश आ रहा था जहां हर किसी को हर किसी की फिक्र थी।

इतने बडे पैमाने पर भूकंप आने के बावजूद टोकियो शहर में एक भी इमारत जमींदोस्त नहीं हुई। सभी इमारतो को इस तकनीक से बनाया गया था कि रिक्टर स्केल पर 9 की तीव्रता के भूकप आने पर भी वे बुरी तरह से हिल तो रहीं थीं लेकिन गिरीं नहीं। लोगों के हताहत होने की कोई बडी खबर नहीं आई। भूकंप से नुकसान सिर्फ इतना हुआ कि पानी सप्लाई करनेवाली पाईप लाईने कई इलाकों में टूट गईं। ऐसे जिन इलाकों में पानी की पाईप लाईनों को नुकसान पहुंचा वहां सरकार ने तुरंत पानी के टैकर और कपडा धुलाई की मशीनें भिजवा दीं और लोगों को जरा भी असुविधा नहीं होने दी। यहां भी लोगों ने अनुशासन दिखाते हुए कतार में खडे रहकर पानी लिया और अपने कपडे धोये बिना कोई हो हल्ला मचाये।

भूकंप के अगले ही दिन पूरा शहर बिलकुल सामान्य दिखा। लोग सुबह 5 बजे से ही अपने दफ्तर जाने के लिये निकलने लगे थे।कई लाईनों पर लोकल ट्रेने फिरसे शुरू हो गईं थीं। सडक पर ट्राफिक भी सामान्य नजर आ रहा था और बाजार भी खुल गये थे। लोगों के चेहरे पर अपनी देश में आई त्रासदी का गम साफ झलक रहा था लेकिन वे डरे हुए बिलकुल नहीं लगे।

विदेशियों में निकल भागने के लिये हडकंप-
जापान दूसरे विश्व युद्ध के बाद अब तक का अपना सबसे बुरा वक्त झेल रहा था लेकिन जापानी नागरिक इससे जरा भी विचलित नहीं दिखे। विचलित दिखे जापान में बसे तमाम विदेशी जिनके देशों ने जापान के लिये एडवाईसरी जारी कर रखीं थीं। किसी देश ने अपने नागरिकों को तुरंत जापान छोडने के लिये कहा तो किसी ने कहा कि रेडीएशन के खतरे के मद्देनजर नागरिक अपने होटलों से बाहर न निकलें तो किसी की सलाह थी कि बेहद जरूरी हो तब ही जापान जायें। इस तरह की एडवाईसरीज ने खौफ का माहौल पैदा कर दिया था। मैं सेनागावा इलाके के रिजनल इमीग्रेशन ब्यूरो में गया तो पाया कि वहां दुनिया के तमाम देशों के 5 हजार से ज्यादा नागरिक रिएंट्री वीजा हासिल करने के लिये 3 किलोमीटर से ज्यादा लंबी कतार लगा कर 10 घंटे से ज्यादा तक खडे थे। मैने कुछ भारतीय, नेपाली और बांगलादेशी नागरिकों से बात की। कुछ का कहना था कि वे फुकूशिमा प्लांट से लीक हो रहे रेडिएशन से डरकर लौट रहे हैं तो कुछ का कहना था कि भारत में उनके घरवालों का काफी दबाव हैं कि वे वापस लौट जायें। सभी ने यही सोच रखा था कि हालात ठीक हो जाने पर वे वापस जापान लौट आयेंगे।
जब मैं जापान से वापस लौट रहा था तो टोकियो हवाई अड्डे पर इससे भी बडा मंजर देखने मिला। हवाई अड्डे पर जन सैलाब उमडा हुआ था। 10 हजार से ज्यादा विदेशी नागरिक अपने अपने देश लौटने के लिये एयरपोर्ट पर मौजूद थे। मुझे भी अपनी फ्लाईट पर चैक इन की प्रक्रिया निपटाने के लिये 3 घंटे लग गये। एक भारतीय महिला से मेरी वहां बात हुई। उसका कहना था- मैं डरकर वापस भारत नहीं लौट रही हूं। उलटा ऐसे वक्त में मुझे जापान छोडते वक्त अपराध बोध हो रहा है। इस देश ने मुझे सबकुछ दिया है। मुसीबत के वक्त मैं इसे छोड कर जा रहीं हूं..लेकिन सिर्फ इसलिये क्योंकि भारत से हर दिन हमारे करीबी रिश्तेदार फोन करके रोना धोना करते हैं। न्यूज चैनलों पर रेडिएशन से जुडी खबरें देखकर वे डरें हुए हैं। मेरे मां और पिताजी की चिंता के मारे तबियत बिगड गई है। उसकी बात मुझे सच लगी। एयरपोर्ट पर कई जापान में बसे ऐसे भारतीय दिखे जो सिर्फ अपने रिश्तेदारों के दबाव में आकर लौट रहे थे। उनमे से कुछ की मीडिया से भी शिकायत थी। एक बडी सॉफ्टवेयर कंपनी में काम करने वाले जयंत नाम के शख्स ने कहा- यार भारत में हमारे घरवाले क्यों नहीं डरेंगे? न्यूज चैनल वाले हेडलाईन दिखाते हैं- मिट जायेगा टोकियो...खत्म हो जायेगा जापान...2012 के विनाश की शुरूवात...प्रलय की उलटी गिनती शुरू..


चूंकि मैं ज्यादातर वक्त कवरेज के लिये बाहर ही था और जापान पहुंच कर मैने कोई भी भारतीय चैनल नहीं देखा था इसलिये मुझे नहीं मालूम था कि चंद भारतीय चैनल जापान की त्रासदी को किसतरह से परोस रहे हैं..लेकिन जिस तरह की हेडलाईंस की का जिक्र जयंत ने किया उससे मैं समझ गया कि कुछ चैनलों ने इसी अंदाज में जापान की खबरें पेश की होंगीं और वे चैनल कौनसे होंगे।

(भाग-2 में पढिये कि कैसे जापान में लोग दूसरों की मदद के लिये किसी भी हद तक जा सकते हैं और कुदरती हादसों से निपटने के लिये क्या हैं जापान के अनोखे तरीके।)

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