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ओ मारिया !!!

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बीते डेढ दशक में मैने 3 बार मुंबई पुलिस कमिश्नर पद को लेकर बडा विवाद होते देखा है। 2003 में फर्जी स्टांप पेपर घोटाले की पृष्ठभूमि पर आर.एस.शर्मा को पुलिस कमिश्नर बनाये जाने पर खींचतान हुई थी। उसके बाद विवाद तब हुआ जब पी.एस.पसरीचा को चंद महीने में ही प्रमोशन देकर कमिश्नर हटा दिया गया। कमिश्नर की कुर्सी पर बैठकर मुझे इंटरव्यू देते वक्त वो रो पडे थे- “ बेटे जब हटाना ही था तो बनाया क्यों था ?” ताजा विवाद राकेश मारिया की नियुकित को लेकर हुआ। एक तो सरकार ने करीब 11 महीने देरी से और 2 हफ्तों तक मुंबई को बिना पुलिस कमिश्नर रखने के बाद अपना फैसला लिया, उसपर मारिया की नियुकित के बाद अहमद जावेद और विजय कांबले  नाम के 2 आई.पी.एस. अफसर नाराज हो गये कि महाराष्ट्र सरकार ने पुलिस कमिश्नर चुनते वक्त उनकी वरिष्ठता को नजरअंदाज किया। वैसे अगर सत्यपाल सिंह ने सियासत से जुडने के लिये अपने पद से इस्तीफा न दिया होता तो शायद सरकार और भी कुछ वक्त के लिये कमिश्नर की नियुकित लटकाये रखती। बहरहाल, तमाम तूफानों के बीच राकेश मारिया हॉट सीट हासिल करने में कामियाब हो गये। इसमें कोई दो राय नहीं कि मारि...