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Showing posts from December, 2015

If you cherished Salman verdict, you must also know Ajay Chaurasia!

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Do you know Ajay Chaurasia? Most likely you have no idea who he is. …but you certainly know who is Salman Khan. You also know that recently Salman was acquitted from Bombay High Court. Last May Sessions Court sentenced him for 5 years imprisonment and within 7 months his appeal was heard and he walked free. Now you may ask, how is Ajay Chaurasia related to Salman’s case? The only thing common between Salman Khan’s case and Ajay Chaurasia’s story is that both had appealed in Bombay High Court against their convictions by the lower courts. However, Salman Khan got justice in just 7 months. Guess since how long Ajay Chaurasia’s appeal is pending with Bombay High Court? Since 7 YEARS! Yes the same figure 7 ! Salman is fortunate that his case was disposed off in 7 MONTHS  & Ajay is making rounds of court since last 7 YEARS. This Ajay Chaurasia doesn’t earn in millions like Salman Khan. He works as a decorator for wedding parties and hardly manages to earn aroun

सलमान खान: इंसाफ की रफ्तार!

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सलमान खान को हिट एंड रन केस में बॉम्बे हाई कोर्ट से बरी हुए आज हफ्ताभर हो गया है। इस दौरान मेरी कई वकीलों से बातचीत हुई जो कि इस केस से जुडे हुए नहीं थे, लेकिन न्यायिक प्रकिया पर नजर रखे हुए थे। ऐसे तमाम वकील मुझे हतप्रभ और गुस्से से भरे हुए नजर आये।...नहीं..नहीं..ये गुस्सा सलमान खान को इस तरह से छोड दिये जाने को लेकर नहीं था, न ही सलमान को बरी करने जाने वाले जज के खिलाफ था। ये गुस्सा था न्यायिक प्रक्रिया की उस तेज रफ्तार को लेकर जो सिर्फ सलमान के मामले में ही नजर आई। अगर किसी आरोपी को निचली अदालत दोषी करार देकर सजा सुनाती है और 6 महीने में ऊपरी अदालत यानी कि हाई कोर्ट उसकी अपील पर फैसला सुना देती है तो ये अभियुक्त के नजरिये से एक अच्छी बात है। अभियुक्त अपने भविष्य को लेकर सस्पेंस में नहीं रहता। उसे ज्यादा कोर्ट के चक्कर नहीं लगाने पडते, तारीख दर तारीख इंतजार नहीं करना होता, वकीलों को ज्यादा फीस नहीं देनी होती। सलमान हिट एंड रन केस में बरी हो गये ये तो उनके लिये एक अच्छी खबर थी ही, लेकिन उससे ज्यादा अहम बात ये थी कि वो उस तकलीफदेह न्यायिक प्रकिया से भी बच गये जो कि आम लोगों को

चेन्नै: त्रासदी दर त्रासदी...वही सवाल, वही ख्याल।

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कहते हैं कि एक ही चीज बार बार देखने-सुनने से उसके प्रति संवेदना खत्म हो जाती है। 17 साल की उम्र में पत्रकारिता शुरू की थी और 37 साल की उम्र तक पहुंचते पहुंचते न जानें कितनी और किस किस तरह की मौतें देखीं। कुदरती और मनुष्यजनित हादसों में होने वाली मौतें, पुलिस और गैंगस्टरों की गोलियों से होने वाली मौतें, दहशतगर्दों की ओर से किये गये बम धमाकों में इंसानी शरीर के चिथडे उडा देने वाली मौतें...मुझे कभी कभी डर लगता है कि मेरी हालत सरकारी अस्ताल में पोस्टमार्टम के लिये रोजाना लाशों की चीरफाड करने वाले संवदेनहीन डॉक्टर की जैसी न हो जाये...लेकिन शायद अभी वो नौबत नहीं आई है। संवेदना बची हुई है...मन सोचता है...दुखी होता है...और लिखने को मजबूर करता है। ये ब्लॉग मैं चेन्नै से बाढ की त्रासदी कवर करके वापस लौटते वक्त लिख रहा हूं। इस बार भी वही सवाल और वही ख्याल मेरे जेहन में हलचल मचा रहे हैं जो बीते डेढ दशक में दुनिया की अनेक बडी कुदरती आपदाओं के कवरेज के दौरान मुझे घेरे हुए थे। 2004 में हिंद महासागर में सुनामी लहरों की हैवानियत, 2005 में मुंबई को डुबा देने वाली बारिश, 2011 में जापान को हिला