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ऐसी किताब को लिखने के लिये चाहिये हिम्मत !!!

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हाल ही में संजय सिंह और राकेश त्रिवेदी की किताब क्रिमिनल्स इन यूनिफार्म पूरी की. अबसे करीब 8-9 महीने पहले इस किताब का मराठी संस्करण मैंने खरीदा था (तब हिंदी संस्करण नहीं आया था) CSMT रेल स्टेशन के स्टाल पर एक आखिरी प्रति बची थी जो मेरे हाथ लगी. किताब पूरी करने में इतना वक्त इस लिए लग गया क्योंकि मैंने इसे टुकड़ों टुकड़ों में पढ़ी. इस दौरान मेरी अपनी किताब पर भी काम चल रहा था और दफ्तर के काम से जुडी भी खूब उठापटक चल रही थी.  किताब पर बात करने से पहले थोड़ा इनके लेखकों के बारे में बता दूँ. दोनों ही लेखक मेरे अच्छे मित्र हैं और मेरी ही तरह घुमक्कड़ी का शौक रखते हैं. दोनों ही क्राइम बीट में अपने झंडे गाड़ चुके हैं. संजय सिंह. टीवी पत्रकारिता में मुझसे कई साल वरिष्ठ हैं और अपने करियर के शुरुवाती दिनों में काम जिनसे लोगों से सीखा उनमे वे भी हैं. साल 2003 में इन्होने तेलगी घोटाले की उस जायसवाल कमिटी रिपोर्ट का पर्दाफाश किया था जिसके बाद महाराष्ट्र की राजनीति में हड़कंप मच गया और उसके बाद बनी जांच टीम ने कमिशनर से लेकर कांस्टेबल तक को गिरफ्तार किया. इसके बाद उन्हें डराने धमकाने की कोशिश की और परेशान