कोयले की खान में हीरा : एक क्राईम रिपोर्टर की नजर में आबा।
आर.आर.पाटिल “ सीधे का मुंह कुत्ता चाटे ” - हिंदी की इस कहावत को आधार बनाकर एक वरिष्ठ और सम्माननीय पत्रकार ने एकबार मुझसे कहा था कि मुंबई में गुनाहों पर अगर काबू रखना है तो 3 पदों पर बैठे लोग थोडे दबंग किस्म के, आक्रमक और शातिर होने चाहिये । पहला पद महाराष्ट्र के गृहमंत्री का, दूसरा मुंबई के पुलिस कमिश्नर का और तीसरा क्राईम ब्रांच के ज्वाइंट कमिश्नर का। उनके मुताबिक अगर इन पदों पर सीधे सादे और साफ सुथरी छवि के लोग बैठे तो मुंबई काबू में नहीं रहेगी। आर.आर.पाटिल को मैं इसका अपवाद मानता हूं। उन्होने बतौर गृहमंत्री न केवल खुद को साफ सुथरा रखा बल्कि अपने काम की छाप भी छोडी...फिर किसी को चाहे वो अच्छी लगी हो या बुरी। साल 2004 में आर.आर.पाटिल यानी आबा को तब पहली बार गृहमंत्री बनने का मौका मिला था जब एनसीपी पर भ्रष्टाचार के तमाम आरोप लग रहे थे और तत्कालीन गृहमंत्री छगन भुजबल तेलगी घोटाले में फंसते नजर आ रहे थे। ऐसे में एनसीपी एक निर्विवाद चेहरे को सामने लाना चाहती थी, जो उन्हें आर.आर.पाटिल में मिला। किस लिये याद किये जायेंगे आबा ? करीब 20 साल पहले जब मैने पत्रकारिता का करियर शुरू ...