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Showing posts from August, 2014

गोविंदा गेला रे गेला...

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बीते 12 साल से मैं जन्माष्मी के मौके पर ठाणे के पांच पखाडी इलाके से अपने चैनल पर लाईव देते वक्त देशवासियों का इस त्यौहार से परिचय कुछ इस तरह से कराता था – “ मुंबई का गोविंदा साहस और संस्कृति का प्रतीक है। ये त्यौहार कई तरह के संदेश देता है। ये टीम वर्क सिखाता है। ये सिखाता है कि ऊंचे लक्ष्य तक पहुचने के लिये जोखिम भी उठाना पडता है। ये सिखाता है कि कई बार मंजिल तक पहुंचने के लिये गिरने-पडने के बाद भी कोशिश करनी पडती है। त्यौहार से ये भी संदेश मिलता है कि आधार अगर मजबूत है तो मिनार देर तक टिकती है, नहीं तो लडखडा जाती है। ” । इस साल भी शायद यही लाईनें कैमरे पर दोहराता, लेकिन बॉम्बे हाईकोर्ट के आदेश के बाद अब गोविंदा का त्यौहार वैसा नहीं रहने वाला जैसा सालों से मनाया जाता रहा है। बॉम्बे हाई कोर्ट के आदेश से मैं आंशिक रूप से खुश भी हूं और दुखी भी। खुश इसलिये कि हाईकोर्ट ने नाबालिग बच्चों के इस त्यौहार में शिरकत करने पर रोक लगा दी है। मैं खुद भी यही चाहता था। दुखी इस बात से हूं कि अब इस त्यौहार की जान ही निकल गई है। अदालत का आदेश है कि मटकी लटकाने की ऊंचाई 20 फुट से ज्यादा न हो। इ...

बचपन चाचा चौधरी के साथ।

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मैने कॉमिक्सें पढनी अबसे करीब 20 साल पहले छोड दी थीं लेकिन बचपन के उन 7-8 साल की यादें जब मैं कॉमिक्सें पढता था आज भी ताजा हैं। वो दौर नब्बे के दशक का था जब मैं कॉमिक्सों और बाल पत्रिकाओं का आदी हो गया था। चंपक, टिंकल, लोटपोट, पराग और बालहंस मेरी पसंदीदा बाल पत्रिकाएं थीं। इनके अलावा चाचा चौधरी, महाबलि शाका, नागराज, राजन-इकबाल और मोटी-पतलू के कॉमिक्सों को पढने में काफी दिलचस्पी थी। दिलचस्पी इतनी ज्यादा कि अक्सर घर पर बडों से डांट खानी पडती थी कि लडके का पढाई-लिखाई में मन नहीं लग रहा है, स्कूली किताबों के बजाय कॉमिक्सों में ही घुसा रहता है। कॉमिक्सों की ऐसी लत लग गई थी कि मां को एक बार स्कूल में मेरी क्लास टीचर से शिकायत करनी पडी कि इसकी कॉमिक्सों की आदत छूट नहीं रही है, आप ही कुछ कीजिये। सच भी था। स्कूल से लौटने के बाद मेरा ज्यादातर वक्त कॉमिक्सों की कल्पनाभरी दुनिया में ही गुजरता था। घर से स्कूल में खाने पीने के लिये जो भी रूपये-दो रूपये मिलते थे उन्हें बचाकर मैं कॉमिक्सों खरीद लेता था। मेरे पास कॉमिक्सों का भंडार हो गया था। एक वक्त तो ऐसा आया कि मेरे पास 200 से ज्यादा कॉमिक्स इ...