शम्स जैसा कोई नही! कहानी एक सहकर्मी, प्रतिद्वंद्वी और दोस्त की।
इंसान जिंदगी में जब बेहद कामियाब हो जाता है , कोई मुकाम हासिल कर लेता है तो अक्सर जाने-अनजाने उसमें अहंकार आ जाता है। वक्त के साथ उनका व्यवहार बदल जाता है। ये सामान्य मानवीय वृत्ति है लेकिन ऐसे लोग विरले होते हैं जो सफलता को अपने भेजे पर हावी नहीं होने देते , लोगों के साथ उनके रिश्तों और व्यवहार में कोई परिवर्तन नहीं आता। कई लोग योग करके अपने आपको संयमित रखने में सफल होते हैं , सफलता पचा पाते हैं, जीवन के उतार-चढाव को साक्षी भाव से देखते हैं। मुझे पता नहीं शम्स ताहिर खान कोई योगा वगैरह करते हैं या नहीं लेकिन इतना जरूर जानता हूं उनका शुमार ऐसे लोगों में है जो बडी ऊंचाईयों को छूने के बाद भी जमीन से जुडे हुए हैं। भारत का शायद ही कोई ऐसा हिंदी टीवी का दर्शक होगा जो शम्स ताहिर खान को न जानता हो। उनके बारे में आज इसलिये लिख रहा हूं क्योंकि हाल ही अपने एक वीडियो में उन्होने मेरे और मेरी किताब के बारे में कुछ बातें कहीं। मुझे लगता है मेरी किताब एक बहाना था जिसके जरिये उन्होने मेरे प्रति अपनी आत्मीयता लोगों के सामने रखी। मैं चाहता हूं कि वे भी एक किताब लिखें , लेकिन उनपर कुछ बोलने के लिये मैं...