शम्स जैसा कोई नही! कहानी एक सहकर्मी, प्रतिद्वंद्वी और दोस्त की।




इंसान जिंदगी में जब बेहद कामियाब हो जाता है, कोई मुकाम हासिल कर लेता है तो अक्सर जाने-अनजाने उसमें अहंकार आ जाता है। वक्त के साथ उनका व्यवहार बदल जाता है। ये सामान्य मानवीय वृत्ति है लेकिन ऐसे लोग विरले होते हैं जो सफलता को अपने भेजे पर हावी नहीं होने देते, लोगों के साथ उनके रिश्तों और व्यवहार में कोई परिवर्तन नहीं आता। कई लोग योग करके अपने आपको संयमित रखने में सफल होते हैं, सफलता पचा पाते हैं, जीवन के उतार-चढाव को साक्षी भाव से देखते हैं। मुझे पता नहीं शम्स ताहिर खान कोई योगा वगैरह करते हैं या नहीं लेकिन इतना जरूर जानता हूं उनका शुमार ऐसे लोगों में है जो बडी ऊंचाईयों को छूने के बाद भी जमीन से जुडे हुए हैं। भारत का शायद ही कोई ऐसा हिंदी टीवी का दर्शक होगा जो शम्स ताहिर खान को न जानता हो। उनके बारे में आज इसलिये लिख रहा हूं क्योंकि हाल ही अपने एक वीडियो में उन्होने मेरे और मेरी किताब के बारे में कुछ बातें कहीं। मुझे लगता है मेरी किताब एक बहाना था जिसके जरिये उन्होने मेरे प्रति अपनी आत्मीयता लोगों के सामने रखी। मैं चाहता हूं कि वे भी एक किताब लिखें, लेकिन उनपर कुछ बोलने के लिये मैं उनकी किताब प्रकाशित होने का इंतजार नहीं करूंगा। मेरे लिये भी ये एक मौका है कि उनकी जिंदगी की एक तस्वीर अपने दोस्तों के सामने रखूं। 

 

मैने और शम्स ताहिर खान ने टीवी पत्रकारिता लगभग साथ ही में शुरू की थी। मैंने 1999 में आज तक की नौकरी शुरू की थी और उन्होने साल 2000 में। आज तक से जुडने के पहले शम्स कई साल जनसत्ता अखबार में क्राईम रिपोर्टिंग कर चुके थे। शम्स के पहले दिल्ली में आज तक के लिये संगीता तिवारी क्राईम रिपोर्टिंग करतीं थीं। उन दिनों किसी ब्यूरो क्रांफ्रेंस में मेरी उनसे पहली मुलाकात हुई थी और हम जल्द ही दोस्त बन गये। आगे चलकर हम प्रतिद्वंवी भी बने लेकिन उससे दोस्ती पर कोई आंच नहीं आई।जनवरी 2003 में मैने आज तक छोड दिया और स्टार न्यूज से जुड गया। स्टार न्यूज पर साप्ताहिक क्राईम शो आता था रेड अलर्ट जिसकी मैं एंकरिंग करता था। उसी दौरान शम्स का भी क्राईम शो जुर्म आज तक पर आता था। बाकी तमाम टीवी शो की तरह इन दोनो क्राईम शो की टीआरपी को लेकर भी होड लगी रहती थी। दर्शकों को जोडे रखने के लिये दोनो क्राईम शो अपराध की एक से एक कहानी ढूंढकर लाते थे। कई बार दोनो ही चैनलों पर एक ही कहानी दिख जाती। शम्स की एंकरिंग की स्टाईल मेरी स्टाईल से बिलकुल अलग थी। एक ओर जहां उनकी आवाज में ठहराव था और चेहरे पर बोले जा रहे शब्दों के अनुरूप भाव होते थे तो वहीं मेरी बोलने की शैली थोडी तेज थी, loud थी। मैं फील्ड पर रिपोर्टिंग करते वक्त जैसे कैमरे के सामने पेश आता था वैसा ही एंकरिंग करते वक्त भी करता, जबकि रिपोर्टिंग करने और एंकरिंग करने में फर्क है। नोएडा के BAG Films के स्टूडियो में रेड अलर्ट के एंकर शूट के वक्त प्रोड्यूसर अजीत अंजुम अक्सर खुद मौजूद रहते और मुझसे वॉईस मॉड्यूलेशन करवाने और चेहरे पर एंकरिंग करते वक्त उचित भावों के लिये उन्हें अक्सर संघर्ष करना पडता। जीतेंद्र ये पीटीसी नहीं एंकरिंग है – अक्सर वे चिडचिडाकर याद दिलाते।

 

शम्स ने जल्द ही देश के सबसे तेजतर्रार क्राईम रिपोर्टर के तौर पर अपने आप को स्थापित कर लिया। उन दिनों मुंबई से क्राईम की खबरों के लिये सबसे ज्यादा मैं, उमेश कुमावत, संजय सिंह और मंदार परब राष्ट्रीय चैनलों पर दिखाई देते थे और दिल्ली से एक ही नाम याद आता है शम्स ताहिर खान का। मुझे आज भी याद है प्रमोद महाजन के पीए विवेक मोईत्रा की दिल्ली में मौत और ओवरडोज की वजह से राहुल महाजन के बीमार पडने वाले कांड में शम्स ने सभी चैनलों को काफी पीछे छोड दिया था। उस कवरेज से जुडी हर बडी जानकारी शम्स के पास सबसे पहले थी और केस से जुडा हर बडा शख्स शम्स के चैनल पर सबसे पहले लाईव था। राहुल महाजन के दोस्त साहिल जारू को खोजने के लिये जब सारे चैनल जमीन आसमान एक किये हुए थे तब शम्स ने अचानक उसे अपने चैनल के स्टूडियो में प्रकट कर दिया। इस जैसे कई कवरेज रहे हैं जहां शम्स ने अपने आप को सर्वश्रेष्ठ साबित किया।

 

शम्स मुंबई अंडरवर्लड की भी अच्छी खासी जानकारी रखते हैं और बडी खबरों पर मुंबई आकर रिपोर्टिंग कर चुके हैं। मुंबई के पुलिस अधिकारियों के बीच भी उनके सूत्र मौजूद हैं। अंडरवर्लड के बनते-बिगडते समीकरणों और मुंबई पुलिस महकमें में चल रही अंदरूनी खींचतान पर उनकी नजर रही है। मुंबई के अपराध जगत पर उनका ज्ञान कितना गहरा है ये क्राईम तक में उनके तमाम वीडियो के जरिये पता चलता है। उनकी किस्सागोई की शैली जबरदस्त है। कोई एक बार सुनना शुरू करता है तो आखिर तक ध्यान लगाकर सुनता है। हर वीडियो पर चंद मिनटों में लाखों की दर्शक संख्या का हो जाना उनकी लोकप्रियता का सबूत है।

 

चूंकि शम्स दिल्ली में रहते हैं और मैं मुंबई में इसलिये हमारी सालों तक मुलाकात नहीं हो पाती। अगर एक दूसरे के शहर में गये भी तो काम की व्यस्तता के चलते मिल नहीं पाते। लेकिन जब भी मुलाकात होती है उसी पुरानी गर्मजोशी से होती है। तीज-त्यौहार के बहाने बीच में एक दूसरे हाल हवाल भी ले लेते हैं।शम्स से सालों बाद मुलाकात पिछली साल अगस्त में जब सुशांत सिंह राजपूत की मौत का कवरेज चल रहा था। मेरी किताब Bombay 3 को हाल ही में उन्होने अपनी किस्सागोई के वीडियो में जगह दी और ये उनके इसी वीडियो का नतीजा है कि किताब की जानकारी देश के उन लाखों लोगों तक पहुंची जो Crime Fiction या Thrillers पढने में दिलचस्पी रखते हैं।

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