हिंदू आतंकवाद - नांदेड धमाके से मिले थे संकेत
हिंदू आतंकवाद अपने पैर पसार रहा है ये बात एटीएस और सीबीआई जैसी जांच एजेंसियों को साल 2006 में ही पता चल गई थी। उस वक्त नांदेड में हुए बम धमाके की तहकीकात में ही ये बात साफ हो गई थी कि कई कट्टरपंथी एक समुदाय विशेष को निशाना बनाने की तैयारी कर रहे हैं, लेकिन उस घटना से हासिल जानकारी को अनदेखा किया गया और नतीजतन कट्टरपंथी अपने मंसूबे में कामियाब हो गये। इसका सबूत है नांदेड धमाके के एक गवाह का बयान, जिसके मुताबिक उसने नागपुर के भोसला मिलिटरी स्कूल में कट्टरपंथियों की ट्रेनिंग देखी और पाया कि युवाओं में नफरत का जहर भरने में फौज और आईबी के पूर्व अफसर भी साथ दे रहे थे।
ये बयान है नांदेड धमाके के गवाह समतकुमार भाटे का जो उन्होने एटीएस को दिया था। भाटे फिलीपिंस की लडाकू कला शॉर्ट स्टिक के जानकार हैं। साल 2000 में उन्हें बजरंग दल की ओर से बुलावा आया कि भाटे उनके कार्यकर्ताओं को भी इस कला कि ट्रेनिंग दें। ट्रेनिंग का ठिकाना था नागपुर का भोसला मिलिट्री स्कूल। भाटे ट्रेनिंग के लिये चले तो गये, लेकिन वहां जाकर उन्होने जो कुछ भी देखा उसने उन्हे हिलाकर रख दिया।)
“ मई 2000 में मैं बजरंग दल के शिविर में मिलिंद परांडे (बजरंग दल के नेता) के कहने पर 300 लाठियों और अपने 3 साथियों के साथ नागपुर के भोसला ट्रेनिंग स्कूल में गया। मुझे लगा था कि वहां सिर्फ मेरी कला का प्रशिक्षण देने के लिये ही ये शिविर लगाया गया है, लेकिन वहां जाकर पता चला कि कराटे इत्यादि जैसी कलाओं के प्रशिक्षण के भी वहां दिये जा रहे थे। प्रशिक्षण देनेवालों में 2 पूर्व सैनिक और एक पूर्व वरिष्ठ आईबी अफसर भी थे । उस ट्रेनिंग में देश के अलग अलग राज्यों से 115 प्रशिक्षणार्थी आये थे और ये कैंप 40 दिनों तक चला। कैंप में मैं हिमांशु पानसे से पहली बार मिला (नांदेड ब्लास्ट का आरोपी जो मारा गया) ट्रेनिंग को गौर से देखने पर पता चला कि युवाओं को गलत राह पर ले जाया जा रहा था और उनका भविष्य खराब है। ये देखकर मैं ट्रेनिंग खत्म होने के एक दिन पहले ही लौट आया। न मैने उनसे कोई मानधन लिया और विचार न मिलने के कारण न ही उन्होने मुझे वापस बुलाया”
अपने बयान में भाटे जिस हिमांशु पानसे की बात कर रहे हैं दरअसल वो नांदेड में 4 अप्रैल 2006 को हुए बम धमाके का एक प्रमुख आरोपी है। उस धमाके में हिमांशु और उसका साथी नरेश मारे गये थे, जबकि 4 अन्य आरोपी घायल हो गये। धमाका आरोपी नरेश राजकोंडवार के घर में ही हुई थी। शुरूवात में धमाके को फटाखों के विस्फोट की शक्ल देने की कोशिश की गई, लेकिन एटीएस की तहकीकात में साफ हो गया कि नरेश के घर में रखा बम एक आतंकी साजिश में इस्तेमाल होना था।
गवाह भाटे का बयान तो ये बताता ही है कि कट्टरपंथियों की ओर से युवाओं को आतंकी ट्रेनिंग दी जा रही है, लेकिन इस बयान के अलावा राहुल पांडे और संजय चौधरी के नार्कोएनेलिसिस टेस्ट भी इस बात को विस्तार से बताते है कि हिंदू कट्टरपंथियों के क्या मंसूबे थे, उन्हें बम बनाने की ट्रेनिंग कौन देता था और विस्फोटक कौन मुहैया करा रहा था.
अपने नार्कोएनेलिसिस टेस्ट में आरोपी राहुल पांडे ने बताया कि- “हिमांशु पानसे ने ही जालना, पूर्णा और परभणी के धमाकों को अंजाम दिया था, जिसमें जालना के धमाके में मैने खुद हिमांशु का साथ दिया। कुछ राजनेता और आरएसएस, वीएचपी और बजरंग दल जैसे संगठनों के सदस्य हिमांशु का साथ दे रहे थे। हिमांशु को बम बनाने की ट्रेनिंग 2 लोगों ने दी थी, जिसमें एक का नाम मिथुन चक्रवर्ती है जो कि पुणे का रहनेवाला है।“
राहुल की तरह ही आरोपी संजय चौधरी का नार्कोएनेलिसिस भी कट्टरपंथियों के मंसूबों की कहानी कहता है- “मिथुन चक्रवर्ती जो कि लंबा चौडा और दाढी रखने वाला आदमी था ने 2 से 3 दिन तक बम बनाने की ट्रेनिंग दी। ये ट्रेनिंग पुणे के पास शिवगड में हुई जहां हिमांशु और उसके साथियों ने 3 तरह के बम बनाने सीखे। ट्रेनिंग से लौटते वक्त मिथुन ने एक बैग दिया जिसमें क बम बनाने का सामान था।“
नांदेड के जिस घर में धमाका हुआ वहां से पुलिस ने पुलिस ने 10 जीवित कारतूस भी बरामद हुए। आरोपियों ने इस बात की तैयारी भी कर ऱखी थी कि अगर कोई हादसा होता है तो उसे पटाखों के विस्फोट की शक्ल दी जाये। इसीलिये घर में बडे पैमाने पर पटाखे लाकर रखे गये। अब सत्तारूढ दल के ही विधायक सरकार से जवाब मांग रहे कि जब नांदेड के वक्त कट्टरपंथियों की साजिश का पता लग चुका था तो सरकार ने ढिलाई क्यों बरती।
अंग्रेजी में एक कहावत है- ए स्टिच इन टाईम सेव्स नाईन...यही सीख अगर सरकार ने नांदेड धमाकों से ली होती तो शायद आगे होनेवाली साजिशों को रोका जा सकता था। एटीएस ने न तो भोसला मिलिट्री स्कूल की ट्रेनिंग में शामिल नेताओं से पूछताछ की और न ही अब तक मिथुन चक्रवर्ती नाम के उस शख्स का पता चल सका है जो कि बम बनाने क ट्रेनिंग देता था।
ये बयान है नांदेड धमाके के गवाह समतकुमार भाटे का जो उन्होने एटीएस को दिया था। भाटे फिलीपिंस की लडाकू कला शॉर्ट स्टिक के जानकार हैं। साल 2000 में उन्हें बजरंग दल की ओर से बुलावा आया कि भाटे उनके कार्यकर्ताओं को भी इस कला कि ट्रेनिंग दें। ट्रेनिंग का ठिकाना था नागपुर का भोसला मिलिट्री स्कूल। भाटे ट्रेनिंग के लिये चले तो गये, लेकिन वहां जाकर उन्होने जो कुछ भी देखा उसने उन्हे हिलाकर रख दिया।)
“ मई 2000 में मैं बजरंग दल के शिविर में मिलिंद परांडे (बजरंग दल के नेता) के कहने पर 300 लाठियों और अपने 3 साथियों के साथ नागपुर के भोसला ट्रेनिंग स्कूल में गया। मुझे लगा था कि वहां सिर्फ मेरी कला का प्रशिक्षण देने के लिये ही ये शिविर लगाया गया है, लेकिन वहां जाकर पता चला कि कराटे इत्यादि जैसी कलाओं के प्रशिक्षण के भी वहां दिये जा रहे थे। प्रशिक्षण देनेवालों में 2 पूर्व सैनिक और एक पूर्व वरिष्ठ आईबी अफसर भी थे । उस ट्रेनिंग में देश के अलग अलग राज्यों से 115 प्रशिक्षणार्थी आये थे और ये कैंप 40 दिनों तक चला। कैंप में मैं हिमांशु पानसे से पहली बार मिला (नांदेड ब्लास्ट का आरोपी जो मारा गया) ट्रेनिंग को गौर से देखने पर पता चला कि युवाओं को गलत राह पर ले जाया जा रहा था और उनका भविष्य खराब है। ये देखकर मैं ट्रेनिंग खत्म होने के एक दिन पहले ही लौट आया। न मैने उनसे कोई मानधन लिया और विचार न मिलने के कारण न ही उन्होने मुझे वापस बुलाया”
अपने बयान में भाटे जिस हिमांशु पानसे की बात कर रहे हैं दरअसल वो नांदेड में 4 अप्रैल 2006 को हुए बम धमाके का एक प्रमुख आरोपी है। उस धमाके में हिमांशु और उसका साथी नरेश मारे गये थे, जबकि 4 अन्य आरोपी घायल हो गये। धमाका आरोपी नरेश राजकोंडवार के घर में ही हुई थी। शुरूवात में धमाके को फटाखों के विस्फोट की शक्ल देने की कोशिश की गई, लेकिन एटीएस की तहकीकात में साफ हो गया कि नरेश के घर में रखा बम एक आतंकी साजिश में इस्तेमाल होना था।
गवाह भाटे का बयान तो ये बताता ही है कि कट्टरपंथियों की ओर से युवाओं को आतंकी ट्रेनिंग दी जा रही है, लेकिन इस बयान के अलावा राहुल पांडे और संजय चौधरी के नार्कोएनेलिसिस टेस्ट भी इस बात को विस्तार से बताते है कि हिंदू कट्टरपंथियों के क्या मंसूबे थे, उन्हें बम बनाने की ट्रेनिंग कौन देता था और विस्फोटक कौन मुहैया करा रहा था.
अपने नार्कोएनेलिसिस टेस्ट में आरोपी राहुल पांडे ने बताया कि- “हिमांशु पानसे ने ही जालना, पूर्णा और परभणी के धमाकों को अंजाम दिया था, जिसमें जालना के धमाके में मैने खुद हिमांशु का साथ दिया। कुछ राजनेता और आरएसएस, वीएचपी और बजरंग दल जैसे संगठनों के सदस्य हिमांशु का साथ दे रहे थे। हिमांशु को बम बनाने की ट्रेनिंग 2 लोगों ने दी थी, जिसमें एक का नाम मिथुन चक्रवर्ती है जो कि पुणे का रहनेवाला है।“
राहुल की तरह ही आरोपी संजय चौधरी का नार्कोएनेलिसिस भी कट्टरपंथियों के मंसूबों की कहानी कहता है- “मिथुन चक्रवर्ती जो कि लंबा चौडा और दाढी रखने वाला आदमी था ने 2 से 3 दिन तक बम बनाने की ट्रेनिंग दी। ये ट्रेनिंग पुणे के पास शिवगड में हुई जहां हिमांशु और उसके साथियों ने 3 तरह के बम बनाने सीखे। ट्रेनिंग से लौटते वक्त मिथुन ने एक बैग दिया जिसमें क बम बनाने का सामान था।“
नांदेड के जिस घर में धमाका हुआ वहां से पुलिस ने पुलिस ने 10 जीवित कारतूस भी बरामद हुए। आरोपियों ने इस बात की तैयारी भी कर ऱखी थी कि अगर कोई हादसा होता है तो उसे पटाखों के विस्फोट की शक्ल दी जाये। इसीलिये घर में बडे पैमाने पर पटाखे लाकर रखे गये। अब सत्तारूढ दल के ही विधायक सरकार से जवाब मांग रहे कि जब नांदेड के वक्त कट्टरपंथियों की साजिश का पता लग चुका था तो सरकार ने ढिलाई क्यों बरती।
अंग्रेजी में एक कहावत है- ए स्टिच इन टाईम सेव्स नाईन...यही सीख अगर सरकार ने नांदेड धमाकों से ली होती तो शायद आगे होनेवाली साजिशों को रोका जा सकता था। एटीएस ने न तो भोसला मिलिट्री स्कूल की ट्रेनिंग में शामिल नेताओं से पूछताछ की और न ही अब तक मिथुन चक्रवर्ती नाम के उस शख्स का पता चल सका है जो कि बम बनाने क ट्रेनिंग देता था।
Comments
सुरेश जी कभी तो ढंग की बहस करना सीखिए
माँ की पूजा जो करे, या कि बाँटता देश.
वह बाँटेगा देश, पंथ की बात मानकर.
उसका साथ कौन देगा,संविधान मानकर?
कह साधक, सिद्धान्त में भूल करो मत पहले.
घर किसका यह देश,तय करो बहस से पहले.
आतंकी को मारना,धर्म-कार्य ही मान.
धर्म-कार्य ही मान,जो उतरा है इस रण में.
तिलक लगाकर पूजा कर,श्रद्धा रख मन में.
कह साधक क्या तुमको बख्सेंगे आतंकी?
अब जितेन्द्र दे ध्यान, नहीं हिन्दू आतंकी.
आतंक वाद कोई भी हो ग़लत है ,चाहे वह मोहल्ले के पनवाडी को आतंकित कर मुफ्त में पान खाना ही क्यों न हो , अलतमश म्याँ इस्लामिक आतंक वाद केवल भारत की ही समस्या नही है ,और बार बार ब्रेन मैपिंग नारको -टेस्ट कहता तो है कि दाल मँ कुछ काला तो है , " क्या अरुषि ह्त्या काण्ड भूल गए ? पर वह सी.बी. आई .थी उसकी एक डिगनिटी थी उसने हाथ खड़े कर दिए और वहाँ मामला राजनीतिक नही था कहीं से किसी का वोट नही लेना था न मिलना था |
यहाँ पर महाराष्ट्र में विधान सभा के चुनाव होने और एस.टी .ऍफ़ . पुलिस आदि काम तो गृह मन्त्रालय यानि कि आर आर पाटिल के आधीन करती है साहेब को भी चुनाव लड़ना है ,अपनी पार्टी को चुनाव लडाना है ,अब कुछ तो दाल-दलीय तो करना पडेगा ही | और रही इसाई आतंक वाद की तो कंधमाल जैसी चिंगारी गुजरात की तरह भड़की ही ईसाई आतंक वाद की प्रतिक्रया स्वरुप ही | इस शब्द "प्रतिक्रया " के लिए पंजाबी स्टाइल में कहा जा सकता है "ये है बड़ी 'कुत्ती' शै ? राजनीति में कुछ की प्रतिक्रया ही प्रतिक्रया है और बाकी अंग्रेजी का ' बुल शि ट" |भई जब बात शुरू हो ही गयी है तो अब बात से बात निकलेगी ही और जब बात से बात निकलती चली जायगी तो बात दूर तलक जायेगी भी | आप सभी anyonasti-chittha.blogspot.com पर आकर यक्ष -प्रश्नों के उत्तर देकर मुझे कृतार्थ करते हुए कृतज्ञ होने का अवसर अवश्य दें
जिसे देखो इसी पर लिख रहा है। कोई नई बात हो तो बताओ। घटना का प्रभाव क्या है, इससे ज्यादा ज़रूरी है घटना के लिए उत्तरदायी कारणों को खोजना।
वो काम तो कोई करेगा नहीं।
हम यूं ही कोसते रहेंगे और अगला धमाका कहीं और हो जाएगा
आप बुरा न माने तो एक बात कहना चाहूँगा - हिंदू(वाद), हिंदू(वादी), हिंद(उत्व), हिंदू(आतंकवाद) जैसे शब्दों का प्रयोग हमें नहीं करना चाहिए. कुछ हिंदू जनों पर बम धमाके करने का आरोप है, जांच चल रही है, अगर यह साबित हो गया तो इन लोगों को सजा मिलेगी. उस स्थिति में भी सारे हिंदू समुदाय को आतंक के साथ जोड़ा नहीं जा सकता. कुछ मुसलमान और स्वघोषित हिंदू एवं अन्य बुद्धिजीवी ऐसा कह कर और लिख कर एक प्रदूषित मानसिकता से लिप्त आनंद का अनुभव कर रहे हैं. उन्हें ऐसा करने दीजिये पर जो लोग उन में से नहीं हैं उन्हें इन शब्दों का प्रयोग तुंरत बंद कर देना चाहिए. मुझे आशा है आप उन लोगों में से नहीं हैं.