समझौते के तहत हुई राज की गिरफ्तारी
अचानक खबर आई कि राज ठाकरे सरेंडर करने जा रहे हैं। 2 बजे खबर आई कि वो मजगांव की अदालत में सरेंडर करने के लिये निकले, 3 बजे खबर आई कि मुंबई पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार किया और ठीक 4 बजे खबर आई कि उन्हें जमानत मिल गई। 2 घंटे में पूरा खेल खत्म हो गया। राजनीतिक पटल पर "सांप भी मर जाये और लाठी भी न टूटे " वाली कहावत की ये एकदम ताजा मिसाल है। उत्तरभारतियों के खिलाफ भडकाऊ भाषण देने के आरोप में जमेदपुर की अदालत में एक वकील ने मामला दर्ज कराया। कोर्ट ने राज के खिलाफ नोटिस जारी किया। जब वो नहीं लौटे तो उनके खिलाफ गैर जमानती वारंट जारी किया गया। ये वारंट पहुंचा मुंबई पुलिस के पास जिसे वारंट की तामील करते हुए राज ठाकरे को पकड कर जमशेदपुर की अदालत के सामने हाजिर करना था।महाराष्ट्र सरकार के लिये ये दुविधा वाली हालत थी क्योंकि राज की गिरफ्तारी का मतलब था फिरसे राज्य में हिंसक वारदातों का होना, कानून व्यवस्था की हालत का खराब होना। सरकार अगर राज के खिलाफ कार्रवाई न करती तो न केवल न्यायिक प्रक्रिया की अवमानना होती बल्कि सरकार को केंद्र की ओर दबाव का भी सामना करना पडता, क्योंकि केंद्र सरकार खुद बि...