कोई हिंदी सिखा दो भाई...प्रेमचंद वाली !
हिंदी दिवस में अभी करीब डेढ महीने का वक्त है...आमतौर पर हिंदी को लेकर चिंता जताना और उसके लिये शाब्दिक रोना धोना तब भी होता है...लेकिन इन दिनों केंदीय लोक सेवा आयोग (UPSC) की परीक्षा देने वालों का हिंदी को लेकर आंदोलन चल रहा है। ऐसे में हिंदी पर ये मेरा ब्लॉग शायद पूरी तरह से अप्रासंगिक नहीं हो। मैं भाषाई कट्टरवाद में यकीन नहीं रखता। मेरा मानना है कि भाषा लोगों को जोडने का माध्यम है, न कि उन्हें बांटने का, लेकिन जब मैं उस अखबार में हिंदी (या हिंदुस्तानी ) की दुर्दशा होते हुए देखता हूं जिसने मुझे हिंदी पढना-लिखना सिखाया, हिंदी पत्रकारिता और लेखन में मेरी रूचि जगाई तो दुख होता है। ये अखबार है नवभारत टाईम्स। खुद एक समाचार संस्थान से जुडा होकर किसी दूसरे समाचार संस्थान के कामकाज पर टिप्पणी करना शायद कुछ लोगों को गलत लगे, लेकिन मैं कम से कम इस बहाने ये छूट ले सकता हूं कि नवभारत टाईम्स प्रिंट का अखबार है और मैं टीवी के माध्यम से जुडा हूं। ये ब्लॉग भी नवभारत टाईम्स के एक पाठक के नजरिये से ही लिख रहा हूं न कि एक टीवी पत्रकार की हैसीयत से। मैं अंग्रेजी माध्यम के स्कूल में पढा और...