कोई हिंदी सिखा दो भाई...प्रेमचंद वाली !
हिंदी
दिवस में अभी करीब डेढ महीने का वक्त है...आमतौर पर हिंदी को लेकर चिंता जताना और उसके लिये शाब्दिक रोना धोना तब भी होता है...लेकिन इन
दिनों केंदीय लोक सेवा आयोग (UPSC) की परीक्षा देने वालों का हिंदी को लेकर
आंदोलन चल रहा है। ऐसे में हिंदी पर ये मेरा ब्लॉग शायद पूरी तरह से अप्रासंगिक
नहीं हो।
मैं
भाषाई कट्टरवाद में यकीन नहीं रखता। मेरा मानना है कि भाषा लोगों को जोडने का
माध्यम है, न कि उन्हें बांटने का, लेकिन जब मैं उस अखबार में हिंदी (या
हिंदुस्तानी ) की दुर्दशा होते हुए देखता हूं जिसने मुझे हिंदी पढना-लिखना सिखाया,
हिंदी पत्रकारिता और लेखन में मेरी रूचि जगाई तो दुख होता है। ये अखबार है नवभारत
टाईम्स। खुद एक समाचार संस्थान से जुडा होकर किसी दूसरे समाचार संस्थान के कामकाज
पर टिप्पणी करना शायद कुछ लोगों को गलत लगे, लेकिन मैं कम से कम इस बहाने ये छूट
ले सकता हूं कि नवभारत टाईम्स प्रिंट का अखबार है और मैं टीवी के माध्यम से जुडा
हूं। ये ब्लॉग भी नवभारत टाईम्स के एक पाठक के नजरिये से ही लिख रहा हूं न कि एक
टीवी पत्रकार की हैसीयत से।
मैं
अंग्रेजी माध्यम के स्कूल में पढा और मैने हिंदी सीखी नवभारत टाईम्स और जनसत्ता
जैसे अखबारों से। तीसरी कक्षा में पहुंचने पर हमें हिंदी दूसरी भाषा के तौर पर
पढाई जाने लगी। घर पर हफ्ते के 6 दिन नवभारत टाईम्स आता था और रविवार को जनसत्ता
और उसके साथ आने वाली साप्ताहिक पत्रिका सबरंग। इन्हें पढते हुए ही हिंदी में मेरी
दिलचस्पी पैदा हुई और आगे जाकर हिंदी पत्रकारिता में मैने अपना करियर बनाने की
सोची।
90
के दशक में कोई खबर अगर नभाटा में छपती थी तो उसकी भाषा कुछ ऐसी होती थी-
अमिताभ
बच्चन ने मुंबई पुलिस के अतिरिक्त आयुक्त ब्रजेश सिंह की किताब का लोकार्पण किया।
इस मौके पर मुख्य अतिथि के रूप में पुलिस आयुक्त राकेश मारिया भी मौजूद थे। किताब
के लेखक ब्रजेश सिंह ने कहा कि पुलिस की नौकरी करते करते इस किताब को लिख पाना
आसान नहीं था।
पिछले
दशक में फिर भाषा ऐसी हो गई-
अमिताभ
बच्चन ने मुंबई पुलिस के एडिश्नल सीपी ब्रजेश सिंह की बुक को लांच किया। इस फंक्शन
में चीफ गेस्ट पुलिस कमिश्नर राकेश मारिया भी प्रेशेंट थे। बुक के राईटर ब्रजेश
सिंह ने कहा कि पुलिस सर्विस करते हुए इस बुक को राइट कर पाना ईजी नहीं था।
शायद
15-20 सालों बाद ये भाषा कुछ ऐसी हो जाये तो मुझे अचरज नहीं होगा-
अमिताभ
बच्चन रिलीजड ए बुक रिटन बाय एडिश्नल सीपी औफ मुंबई पोलीस ब्रजेश सिंह। औन थिस
ओकेशन पुलिस कमिश्नर राकेश मारिया वाज प्रेशेंट एस दी चीफ गेस्ट। आथर औफ दी बुक
ब्रजेश सिंह सैड इट वाज नॉट ईजी टू राईट द बुक व्हाईल सर्विंग इन पोलीस।
नवभारत
टाईम्स में काम करने वाले कुछ दोस्तों ने मुझे बताया कि चंद साल पहले प्रबंधन की ओर से अखबार की नई भाषा को तय
किया गया। अखबार को “यंग फिल” देने के लिये और युवा पाठकों के बीच
जगह बनाने के लिये हिंदी के वाक्यों में अंग्रेजी के शब्द घुसेडे जाते हैं, जो कि
बेवजह और जबरन घुसेडे गये लगते हैं।इस भाषा को हिंगलिश् भी नहीं कह सकते। इस भाषा
पर अमल करते करते नवभारत टाईम्स में काम करने वाले अच्छे हिंदी पत्रकारों की हिंदी
भी बिगड गई। ये बात फेसबुक पर उनके हिंदी में लिखे पोस्ट पढकर पता चलती है।
किसी
भी भाषा के विकास के लिये या उसके लोकप्रिय होने के लिये उसका लचीला होना जरूरी
है, नये शब्दों को आत्मसात करना जरूरी है, लेकिन ये लचीलापन इतना भी न हो कि वो
भाषा की मूल पहचान ही खत्म कर दे।
नवभारत
टाईम्स की भाषा को बिलकुल नापसंद करने के बावजूद ये अखबार आज भी मेरे घर आता है
क्योंकि इस अखबार में शहर के कई बेहतरीन हिंदी पत्रकारों की जुटाई खबरें छपतीं
हैं, लेकिन मैं ये उम्मीद बिलकुल नहीं कर सकता कि इस अखबार को पढकर मेरा बेटा
हिंदी सीखेगा।
मेरे
इस लेख से आहत होकर शायद कोई सज्जन पलटवार कर कहें – हुंह...न्यूज चैनलों में कौनसी सही हिंदी दिखाई
जाती है।
उनसे
मैं यही कहूंगा- जनाब मैं आपसे सहमत हूं।
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