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Showing posts from September, 2013

अंदर की बात: कैसे संजय दत्त को मिलते मिलते रह गई 2 महीने की सजा माफी।

बीते गुरूवार को यरवदा जेल के कैदी संजय दत्त का पुणे के बाल गंधर्व नाट्यगृह में एक खास शो आयोजित होने वाला था। सामाजिक कामों के लिये फंड जुटाने की खातिर संजय दत्त ने बाकी कैदियों के साथ मिलकर कुछ छोटे छोटे नाटक तैयार किये थे जिनमें दत्त के मुन्नाभाई अवतार की झलक देखने मिलती। दत्त कई डांस नंबरों पर भी नाचने वाले थे। कई दिनों पहले से इस शो की तैयारी शुरू हो गई थी और टिकट भी बेच दिये गये थे। शो में महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चव्हाण और गृहमंत्री आर.आर.पाटिल भी शिरकत करने वाले थे। अखबारों में भी शो को लेकर पहले से खबरें छपवा दी गईं थीं और दूरदर्शन को शो के अधिकार बेच दिये गये थे, लेकिन गुरूवार दोपहर अचानक शो को रद्द कर दिया गया। शो रद्द करने के पीछे सुरक्षा कारणों का हवाला दिया गया। कहा गया कि ऐसी जानकारी मिली है कि शो के दौरान कोई गडबडी हो सकती है, लेकिन क्या हकीकत में बात यही थी ? अब पढिये शो के रद्द किये जाने के पीछे की असली कहानी जो महाराष्ट्र जेल प्रशासन के एक आला सूत्र से पता चली। सबसे पहले इस सवाल पर गौर करते हैं कि इस तरह के शो को आयोजित करने का आईडिया किसका था और...

नैरॉबी ने 26/11 से कुछ नहीं सीखा, क्या हमने सीखा?

26 नवंबर 2008 के मुंबई में हुए आतंकी हमलों को पूरी दुनिया ने देखा। आतंकवाद से पीडित तमाम राष्ट्रों ने उन हमलों से सीख ली और भविष्य में ऐसे हमले अपनी जमीन पर टालने के लिये रणनीतियां भी बनाईं। केन्या भी भारत की तरह ही आतंकवाद से प्रभावित एक देश है। मुंबई के हमलों के बाद बाकी देशों की तरह केन्या के पास भी मौका था अपनी सुरक्षा का जायजा लेने का और खामियों को दुरूस्त करने का जो उसने नहीं किया। भारत में भी उन हमलों के बाद बहुत कुछ हुआ...लेकिन जो नहीं हुआ, ये आलेख उसपर है। खासकर 26-11 की तर्ज पर नैरोबी में हुए आतंकी हमले के बाद इसका विश्लेषण प्रासंगिक है। मुंबई के किसी शॉपिंग मॉल में दाखिल होने से पहले आपको गेट पर गणवेश पहने निजी सुरक्षाकर्मियों से दो चार होना पडेगा। पहले वो आपको  DFMD (Door Frame Metal Detector) से गुजरने के लिये कहेंगे, फिर एक सुरक्षा गार्ड अपने हाथ में लिये दूसरे मेटल डिटेक्टर को सिर से पैर तक घुमायेगा। एक सुरक्षा गार्ड आपके बैग को खोल कर उसपर एक नजर डालेगा और इस प्रक्रिया से गुजरने के बाद आप उस शॉपिंग मॉल में प्रवेश कर पायेंगे। जब भी मैं मुंबई के किसी मॉल या फि...

Nairobi didnt learn from 26/11, have we?

While entering a shopping mall you are greeted by safari wearing men, they ask you to pass through a DFMD (Door Frame Metal Detector) they touch your various body parts with hand held metal detectors, another guy asks you to open your bag and just peeps into it and then you gain access to the mall. Every time I visit a mall or a famous temple in Mumbai, I experience a mixed feeling of anger, amusement & disappointment for this so called “Security Check” procedure. To be blunt, they are good for nothing. Just look at the faces and body language of the guys who have been assigned this job. They look bored, uninterested and act like robots. Touching the hand held metal detector to your body or having a look at your bag just seems to be a ritual. They don’t seem to be genuinely interested in scrutinizing your belongings and finding something suspicious or objectionable from you. Often, I wonder, if some criminal or terrorist is really caught with arms then what will they do?...

मुंबई को क्यों चाहिये सांप्रदायिक सौहार्द की घुट्टी?

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मुज्जफरनगर में भडकी सांप्रदायिक हिंसा ने साल 1992-93 में मुंबई में हुए दंगों की यादें फिर ताजा कर दीं। उस दौरान मैं एक स्कूली छात्र था और उस उम्र में मैने जो देखा वो तस्वीरें आज भी जेहन में साफ हैं। मेरी पैदाईश शहर के कुख्यात “ बंबई नंबर 3 ” में हुई थी। यहां हिंदू और मुसलमानों की मिलीजुली आबादी है और मेरा घर उस जगह था जहां सडक के एक ओर हिंदुओं के घर हैं और दूसरी ओर मुसलिमों के। वो सडक हिंदू और मुसलिमों दंगाई गुटों के लिये कुरूक्षेत्र बन गई थी। वे खौफनाक पल आज भी रोंगटे खडे कर देते हैं - किस तरह से किसी के पेट में तलवार घुसेड कर अंतडियां बाहर निकाली गईं, कैसे किसी को पेट्रोल से नहलाकर माचिस सुलगा दी गई, कैसे किसी को पकड कर उसके सिर में गोली दागी गई। दिसंबर 1992 और जनवरी 1993 के दूसरे हफ्ते के अखबारों में छपने वाली लगभग हर खबर इंसानियत को शर्मसार कर देने वाली थी। वे रातें भी किसी कयामत से कम नहीं थीं। कब किसी इमारत को आग लगा दी जायेगी, कब पेट्रोल बम से दंगाई हमला कर देंगे जैसे सवालों ने नींद उडा रखी थी। जिस इंसान ने कभी जिंदगी में मक्खी भी न मारी हो, वो दंगाईयों से बचने के लि...

Why Mumbai Needs A Dose of Communal Harmony Urgently?

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The communal clashes of Muzzafarnagar have refreshed my memories of Mumbai riots of 1992-93. I was a school going kid that time & whatever I witnessed at that age is still clear in my consciousness. I was born & brought up in city’s infamous locality of “Bombay Number 3”. The locality is having a mixed population of Hindus & Muslims & my house was located beside a road whose one side was occupied by Hindus & another by Muslim residents. The road became a battleground of the two warring communities during those riots. I still remember those pictures where somebody’s intestines were ripped apart by a sword, where somebody was bathed with petrol & then a burning match stick was thrown at him & how a rioter shot somebody in his head. Daily newspapers published during the second week of December 1992 & January 1993 were full of stories which ashamed humanity. Nights were no less than hell. Nobody was able to sleep fearing attacks from rioters. Even ...

गद्दार हाथ आ भी गया तो...

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हाल ही में केंद्रीय गृहमंत्री सुशीलकुमार शिंदे ने फरमाया कि जल्द ही दाऊद इब्राहिम को भी पकड कर भारत लाया जायेगा. यूपीए सरकार के बाकी मंत्रियों की ओर से देश की अर्थव्यवस्था, विकास और भ्रष्टाचार के खिलाफ दिये गये तमाम बयानों के बीच कम से कम शिंदे के इस बयान में थोडा दम नजर आता है. जिस तरह से हाल में अब्दुल करीम टुंडा और यासीन भटकल जैसी बडी मछलियां पकडीं गईं, अमेरिका की ओर से जो दबाव पाकिस्तान पर बनाया जा रहा है और पाकिस्तान के भीतर जो घटनाक्रम हो रहे हैं, उनको देखते हुए दाऊद की गिरफ्तारी अब सिर्फ सपना ही नजर नहीं आती . सूत्र भी बताते हैं कि डी कंपनी में इन दिनों सबकुछ ठीक नहीं चल रहा है . मान लें कि अगर दाऊद जिंदा हमारे हाथ आ भी जाता है तो सवाल उठता है कि हम उसके साथ क्या कर पायेंगे ? क्या दाऊद को उसके सारे गुनाहों और आतंकी वारदातों के लिये सजा मिल पायेगी ? क्या उसका दुनियाभर में फैला संगठित अपराध का गिरोह खत्म हो जायेगा. इन सवालों के जवाब उन हालातों में छुपे होगें जिनमें वो हमारी एजेंसियों के हाथ लगेगा। पाकिस्तान फिलहाल आधिकारिक तौर पर तो दाऊद को हमें सुपुर्द करने से रहा क्...

Even if we get the traitor...

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Recently, Home Minister Sushilkumar Shinde stated that we will also get Dawood Ibrahim soon. Unlike, all other statements made by UPA ministers regarding country's economy, progress & measures against corruption, this one seem to have some substance. Considering the recent arrests of big fishes like Abdul Karim Tunda & Yaseen Bhatkal, the US pressure on Pakistan & internal circumstances within Pakistan , it is no longer just a patriot's fantasy to see Dawood behind Indian bars. Sources also point out that everything is not going all right within D –Company itself. Assuming, we are able to get Dawood alive, the questions arises what will we be able to do with him? Will he be punished for all the crimes & terrorist activities attributed to him? Will his global organised crime syndicate cease to exist? Answers to these questions lie in the manner in which our agencies get him. Firstly, Pakistani govt will never officially hand him over to us as their st...