गद्दार हाथ आ भी गया तो...



हाल ही में केंद्रीय गृहमंत्री सुशीलकुमार शिंदे ने फरमाया कि जल्द ही दाऊद इब्राहिम को भी पकड कर भारत लाया जायेगा. यूपीए सरकार के बाकी मंत्रियों की ओर से देश की अर्थव्यवस्था, विकास और भ्रष्टाचार के खिलाफ दिये गये तमाम बयानों के बीच कम से कम शिंदे के इस बयान में थोडा दम नजर आता है. जिस तरह से हाल में अब्दुल करीम टुंडा और यासीन भटकल जैसी बडी मछलियां पकडीं गईं, अमेरिका की ओर से जो दबाव पाकिस्तान पर बनाया जा रहा है और पाकिस्तान के भीतर जो घटनाक्रम हो रहे हैं, उनको देखते हुए दाऊद की गिरफ्तारी अब सिर्फ सपना ही नजर नहीं आती. सूत्र भी बताते हैं कि डी कंपनी में इन दिनों सबकुछ ठीक नहीं चल रहा है.

मान लें कि अगर दाऊद जिंदा हमारे हाथ आ भी जाता है तो सवाल उठता है कि हम उसके साथ क्या कर पायेंगे? क्या दाऊद को उसके सारे गुनाहों और आतंकी वारदातों के लिये सजा मिल पायेगी? क्या उसका दुनियाभर में फैला संगठित अपराध का गिरोह खत्म हो जायेगा. इन सवालों के जवाब उन हालातों में छुपे होगें जिनमें वो हमारी एजेंसियों के हाथ लगेगा। पाकिस्तान फिलहाल आधिकारिक तौर पर तो दाऊद को हमें सुपुर्द करने से रहा क्योंकि उसका पक्ष रहा है कि दाऊद हमारी जमीन पर है ही नहीं (हालांकि उनके एक राजनयिक की जुबान से हाल ही में सच्चाई फिसल गई थी, जिसका बाद में उन्होने खंडन किया)। अगर दाऊद खुद को जानबूझकर यूरोपीय संघ के किसी देश में गिरफ्तार करवा लेता है, जैसा कि अबू सलेम के मामले में हुआ तो उसे भारत लाने के लिये हमारी सरकार को पहले वहां एक कानूनी लडाई लडनी होगी। उसका प्रत्यर्पण कई शर्तों के साथ होगा जैसे कि मौत की सजा नहीं दी जानी चाहिये, 25 साल से ज्यादा की सजा नहीं दी जानी चाहिये, सुरक्षा दी जानी चाहिये वगैरह। इस तरह से सशर्त दाऊद का भारत आना जाहिर तौर पर भारतवासियों की अपने सबसे बडे गुनहगार और गद्दार के पकडे जाने की खुशी को फीका करे देगा।

दूसरा, भारतीय कमांडो दस्तों की ओर से अबोटाबाद सरीखे ऑपरेशन का विकल्प सिर्फ काल्पनिक ही है। हालांकि, हमारी सरकार दाऊद के ठिकानों से वाकिफ है, उसके खिलाफ अमेरिकियों की तरह दुश्मन की जमीन पर ऑपरेशन करने का हमारे पास अनुभन नहीं है। ऐसी कोशिश भी करने से दोनो परमाणु हथियारों से लैस राष्ट्रों के बीच जंग छिड सकती है।

तीसरा विकल्प हो सकता है कि दाऊद को नेपाल सीमा से पकडा जाये या फिर किसी गैर यूरोपीय संघ राष्ट्र से उसे डीपोर्ट कराया जाये (ये तब ही मुमकिन है जब दाऊद अपनी जान बचाने के लिये खुद को सरेंडर करे)। इसी हालात में भारतीय एजेंसियां खुलकर दाऊद के खिलाफ कानूनी कार्रवाई कर सकेंगीं और अपनी मर्जी के मुताबिक दाऊद के खिलाफ मुकदमा चला सकेंगी। हालांकि, दाऊद की गिरफ्तारी के बाद भी आगे का रास्ता आसान नहीं होगा।

ये सच है कि दाऊद मुंबई अंडरवर्लड का सबसे क्रूर, खतरनाक और शातिर चेहरा है। एक वक्त था जब दाऊद के नाम के जिक्र से ही बडी बडी फिल्मी हस्तियों, बिल्डरों, व्यापारियों और क्रिकेटरों के पसीने छूट जाते थे। दाऊद के नाम से जो खौफ पैदा होता था उससे उसके गिरोह ने खूब पैसे उगाहे। बहरहाल, दाऊद ने 90 के दशक के मध्य में खुद फोन करना बंद कर दिया। सिर्फ हाल ही में दिल्ली पुलिस ने एक मैच फिक्सिंग मामले की तहकीकात के दौरान दाऊद की उसके एक गुर्गे से बातचीत का रिकार्ड हासिल किया। दाऊद के ज्यादातर कॉल उसका दाहिना हाथ छोटा शकील (बाबू शकील अहमद मियांजान शेख) करता था। दाऊद पर पुलिस और मीडिया ने तमाम गुनाहों के आरोप लगा रखे हैं, लेकिन सवाल ये है कि क्या पुलिस के पास इतने सबूत हैं कि वो दाऊद का नाम उसके गिरोह की ओर से अंजाम दिये गये गुनाहों के साथ जोडकर अदालत में साबित कर सके। ये कोई भी अंदाजा लगा सकता है कि खुद की पैरवी के लिये दाऊद राम जेठमलानी सरीखे बडे से बडे वकीलों की फौज खडा कर देगा (दाऊद ने जेठमलानी को फोन करके एक बार सरेंडर करने की भी पेशकश की थी) जो सीबीआई की ओर से लगाये गये आरोपों को तार तार करने में कोई कसर नहीं छोडेंगे । इसके अलावा जहां तक 80 के दशक और 90 के दशक की शुरूवात में दाऊद के खिलाफ दर्ज मामलों का सवाल है तब के ज्यादातर जांच अधिकारी या तो रिटायर हो गये हैं, मर गये हैं या फिर मुंबई से बाहर रहने चले गये हैं। गवाहों का भी यही हाल है। अगर पुलिस कई गवाहों को खोज भी लाती है तो ये जानना दिलचस्प होगा कि कितने गवाह अदालत में दाऊद के खिलाफ गवाही दे पाते हैं।

जहां तक 12 मार्च 1993 के सिलसिलेवार बम धमाकों का ताल्लुक है, सीबीआई के लिये टाडा कोर्ट में अपने आरोप साबित कर पाना काफी चुनौतीपूर्ण होगा। हालांकि, इस मामले में दाऊद आरोपी नंबर 1 है लेकिन जो भारी भरकम चार्जशीट अदालत में दाखिल की गई उसमें दाऊद की भूमिका का जिक्र सिर्फ 3 जगह पर आता है। यहां भी दाऊद के खिलाफ सबूत सिर्फ 3 आरोपियों के इकबालिया बयान पर आधारित है (दाऊद फणसे, सलीम मिरां शेख और इजाज पठान)। दाऊद के खिलाफ भी अबू सलेम और मुस्तफा दौसा की तरह अलग मुकदमा चलेगा क्योंकि मुख्य मुकदमा साल 2007 में ही खत्म हो चुका है और टाडा अदालत आरोपियों के भविष्य का फैसला सुना चुकी है।

बहरहाल, हमें पूरी तरह से नाउम्मीद होने की भी जरूरत नहीं है। ये विश्लेषण सिर्फ सार्वजनिक तौर पर उपलब्ध जानकारी के आधार पर किया गया है। फिलहाल ये मानना ही बेहतर होगा कि हमारी खुफिया और जांच एजेंसियों उपरोक्त चुनौतियों से वाकिफ होंगीं और उन चुनौतियों से निपटने के लिये उनके पास रणनीति भी तैयार होगी। देर सबेर हमें निम्न में से एक खबर मिलने ही वाली है- दाऊद इब्राहिम की बीमारी के कारण मौत, दाऊद इब्राहिम गिरफ्तार या दाऊद इब्राहिम की हत्या। आप कौनसी वाली सुनना चाहते हैं?

  

Comments

Popular posts from this blog

#Bombayphile Telgi Scam: Crime Reporting In Mumbai 20 Years Ago

नागरिक बनो, भक्त नहीं!

#Bombayphile : The Cosmopolitanism of Mumbai And Its Aberrations