कैसा जायेंगा वोट डालने कू ??? मेरी तो #$ फट गई है...
बतौर टीवी पत्रकार मैं अब तक 4 लोकसभा के चुनाव कवर कर चुका हूं। चुनावी कवरेज के दौरान कई दिलचस्प वाकये देखने और अनुभव करने मिले। ऐसी ही एक रोचक घटना साल 2004 के लोकसभा चुनाव की है, जो किसी फिल्मी सीन से कम नहीं। किस्सा अंडरवर्लड डॉन अरूण गवली से जुडा है, जो उस साल अपनी पार्टी अखिल भारतीय सेना से लोकसभा का चुनाव लड रहा था।
मतदान वाले दिन अरूण
गवली के गुर्गेों ने मीडिया को इत्तला कर दिया कि “डैडी” (गवली अपने गिरोह में इसी नाम से जाना जाता है) 10
बजे वोट डालने जायेंगे। मतदान केंद्र अरूण गवली के दगडी चाल के घर से महज 200 मीटर
की दूरी पर ही था। अखबारों के तमाम फोटोग्राफर और टीवी न्यूज चैनलों की टीमें गवली
के घर पहुंच गईं, क्योंकि ये बताया गया था कि वोट डालने के लिये निकलने से पहले
डैडी मीडिया से बात करेंगे। मैं भी अपने कैमरे के साथ गवली के घर पहुंचा। इमारत की
तीसरी मंजिल पर मौजूद हॉल में सभी पत्रकारों को बिठाया गया। सभी को चाय पेश की गई।
कुछ देर में गांधी टोपी और सफेद कुर्ता-पायजामा पहने अरूण गवली हॉल में दाखिल हुआ।
मुस्कराते हुए हाथ जोडकर उसने सबका अभिवादन किया और मीडिया को संबोधित करने के
लिये एक कुर्सी की ओर आगे बढा...लेकिन इसी बीच गवली के एक गुर्गे ने उसके कान में
कुछ कहा जिसके बाद उसके चेहरे के भाव बदल गये। वो तेजी से हॉल की खिडकी की तरफ
गया, जहां से दगडी चाल का मुख्य दरवाजा नजर आता था। वो कुछ पल खिडकी के बाहर
देखता, फिर अपना मुंह खिडकी से दूर कर लेता। करीब 10 मिनट तक वो इसी तरह से खिडकी
पर तांक झांक करता रहा। ऐसा लग रहा था कि गवली किसी को अपनी खिडकी से चोरी छिपे
देख रहा था और नहीं चाहता था कि वो जिस शख्स को देख रहा है , वो उसे देखे। गवली के
शरीर से पसीना टपकने लगा। पसीने से उसका कुर्ता गीला हो चुका था और आंखों में किसी
का डर झलकने लगा।
कुछ देर तक तो मीडिया के
लोग इंतजार करते रहे, लेकिन आधं घंटे बाद उनका भी सब्र जवाब देने लगा। शहर में कई
और भी बडे लोग वोट डालने जा रहे थे और उनकी भी कवरेज करनी थी। ज्यादा देर तक कैमरा
सिर्फ दगडी चाल में नहीं फंसाया जा सकता था। “आज तक” चैनल के में तब काम कर रहे केतन वैदय ने गवली से कहा
कि उसे लाईव करना है, लेकिन गवली ने खिडकी के पास खडे होकर ही हाथ हिलाते हुए कहा
कि वो अब वोट डालने नहीं जायेगा। सभी के लिये ये एक खबर थी। उम्मीदवार खुद वोट
डालने नहीं जा रहा है। केतन ने उसे मनाया और कहा कि वो लाईव के दौरान लोगों को
बताये कि वो क्यों वोट डालने नहीं जा रहा है। गवली राजी हो गया और कुर्सी पर आकर
बैठ गया। केतन ने उसके बगल में एक कुर्सी लगाई और इंटरव्यू शुरू किया-
केतन- अरूण गवलीजी आप
लोकसभा का चुनाव लड रहे हैं, लेकिन खुद ही वोट डालने नहीं जा रहे। ऐसा क्यो?
गवली- अरे कैसा जायेंगा वोट डालने कू ??? मेरी तो #$ फट गई है...
ये इंटरव्यू लाईव था और
गवली ने ऐसे शब्द का इस्तेमाल किया था जो सामान्य तौर पर टीवी पर नहीं सुनाया जा
सकता...पर लाईव इंटरव्यू शुरू हो चुका था और केतन को समझ नहीं आ रहा था कि उसे
रोके कैसे। वैसे अरूण गवली ने इससे पहले कभी भी कैमरे पर ऐसी जुबान का इस्तेमाल
नहीं किया था। 1997 में उसने अपनी पार्टी शुरू की थी और इतने सालों में मीडिया से
बातचीत का सलीका वो सीख चुका था...लेकिन इस वक्त गवली बदहवास था और उसकी नजर बार
बार हॉल की खिडकी पर जा रही थी। उसकी हालत असामान्य हो गई थी।
गवली ने केतन के सवाल का
जवाब जारी रखा- कैसा जायेंगा वोट डालने कू ??? मेरी तो #$ फट गई है...वो नीचे खडा है न मर्डर केस का आरोपी वो
मेरे को मार डालेगा।
केतन- कौनसे मर्डर केस
का आरोपी खडा है?
किसकी बात कर रहे हैं आप?
गवली- अरे वो मर्डर केस
का आरोपी है न विजय सालस्कर...मेरे कितने छोकरे लोग का मर्डर किया एनकाउंटर बताके
उसने...कुत्ते के जैसा मारा सबको। अभी मेरे को मारने के लिये आयेला है...मैं वोट
डालने को कईसा जायेंगा? मेरी @#$ में गोली मारेंगा वो... ऐसा बोला
वो नीचू मेरे छोकरे लोग कू। मैं नहीं जा सकता। वो बहुत बेकार आदमी है...पुलिस का
कपडा में क्रिमीनल है वो...साला नार्कोटिक्स के केस में फंसेला था...।
बोलते वक्त गवली के हाथ कंपकंपाने लगे थे। ये सारा कुछ चैनल पर लाईव जा रहा
था। गवली की हालत इस वक्त उसकी सार्वजनिक इमेज से बिलकुल उलट थी। मुंबई के 4 बडे
डॉन में अरूण गवली का नाम शामिल था। ये वो गवली था जिसने दाऊद गिरोह को नाकों चने
चबवाये थे, गवली के शूटरों ने दाऊद इब्राहिम के बहनोई इब्राहिम पारकर की सरेआम
हत्या की थी, गवली की गोलियों ने कई बिल्डरों, मिल मालिकों, कारोबारियों और फिल्मी
हस्तियों को मौत की नींद सुलाई थी। गवली के एक फोन से बडे बडों के पसीने छूट जाते
थे। अपने किसी शूटर की हत्या होने पर गवली कभी बदला लेने से नहीं चूकता था।
गैंगवार के दौरान गवली के शूटरों ने कई बार मुंबई की सडकों को खून से लाल किया।
वही अरूण गवली इस वक्त खुद अपने घर में आतंकित था, बदहवास था। उसे मौत नजर आ रही
थी।
मै उस खिडकी पर गया, जहां से बाहर झांकने के बाद गवली की हालत खराब हो गई थी।
देखा तो दगडी चाल के गेट पर वाकई में मुंबई पुलिस के इंस्पेक्टर विजय सालस्कर खडे
थे। सालस्कर ने सफेद रंग की शर्ट पहन रखी थी। उनका एक हाथ बगल में खडी जिप्सी पर
था और दूसरे हाथ में सिगरेट थी। वे तीसरी मंजिल की ओर घूरते हुए किसी फिल्मी विलेन
की तरह धुआं उडा रहे थे। सालस्कर की आंखें लाल थीं और शक्ल पर हलका गुस्सा नजर आ
रहा था।
मैं समझ गया कि गवली क्यों इतना आतंकित हो गया है। विजय सालस्कर उन दिनों
मुंबई पुलिस की क्राईम ब्रांच में थे। अपने पुलिसिया करियर के दौरान सालस्कर ने
अरूण गवली गिरोह की कमर तोड कर रख दी थी। गवली के 30 से ज्यादा शूटरों को सालस्कर
ने तथाकथित एनकाउंटरों में ढेर किया था। यहां तक कि इसी दगडी में घुसकर भी उन्होने
गवली के लोग मारे थे। अरूण गवली का दाहिना हाथ माने जाने वाले खतरनाक गैंगस्टर सदा
पावले उर्फ सदा मामा को भी सालस्कर ने उसके साथी विजय तांडेल के साथ घाटकोपर में
मौत के घाट उतारा था। विजय सालस्कर पुलिस महकमें में अरूण गवली के सबसे बडे दुश्मन
थे। जाहिर था सालस्कर को अपने दरवाजे पर खडे पाकर गवली को किसी साजिश की शंका हुई
और डर के मारे उसने घर से बाहर न निकलने का फैसला किया।
मैं तीसरी मंजिल से नीचे आकर सालस्कर से मिला और पूछा- आप यहां क्यों आये हैं ?
“अरे यार मेरे को कमिश्नर
साहब ने बोला कि वोटिंग वाले दिन सेंसिटिव एरिये पर वॉच रखने का है। अभी ये
सेंसेटिव एरिया है न...इसके लिये वॉच रखने को आया”।
सालस्कर ने मुझे आंख मारते हुए जवाब दिया और हम दोनो हंस पडे।
“...लेकिन आपकी वजह से
उम्मीदवार वोट डालने को नहीं जा रहा है।”
“वो उसका प्रॉब्लेम है। मैं
तो अपनी ड्यूटी कर रहा हूं”।
कुछ मिनटों बाद सालस्कर वहां से चले गये, लेकिन उनकी थोडी देर की मौजूदगी ने
गवली को इतना खौफजदा कर दिया कि शाम होने तक वो तीसरी मंजिल से नीचे नहीं आया।
उस घटना के 4 साल बाद 26-11-2008 को मुंबई में हुए आंतकी हमले के दौरान विजय
सालस्कर शहीद हो गये। पूरे शहर भर में विजय सालस्कर और उनके साथ शहीद हुए एडिश्नल
कमिश्नर अशोक कामटे और आतंकवाद विरोधी दस्ते के प्रमुख हेमंत करकरे को श्रद्धांजलि
देते हुए तस्वीरें लगाईं गईं। हमले के करीब 2 हफ्तों बाद मैं दगडी चाल के सामने
अपनी कार से गुजरते वक्त चौंक पडा। चाल के दरवाजे पर ठीक उसी जगह सालस्कर की
तस्वीर लगी थी, जहां से 4 साल पहले सालस्कर ने गवली को सिगरेट का धुआं उडा कर
डराया था। तस्वीर के नीच लिखा था- “शहीद विजय सालस्कर को सलाम, अरूण गुलाब गवली, अखिल भारतीय सेना प्रमुख” ।
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