ब्लॉग की ताकत से किसकी नींद हराम?
(मई 2015 में कोलंबो, श्रीलंका में आयोजित अंतरराष्ट्रीय ब्लॉगर्स सम्मलेन में मेरे संबोधन के अंश।)
सम्मानीय
दोस्तों,
इस
अंतरराष्ट्रीय ब्लॉगर्स सम्मेलन में शिरकत करते हुए मुझे काफी खुशी हो रही है। अलग
अलग राष्ट्रों में बसे ब्लॉगर्स बिरादरी के सदस्यों से परिचय का ये एक बेहतरीन
मौका है। इस मौके पर मुझे कमी खल रही है बांग्लादेश के हमारे दिवंगत साथी अविजित
रॉय और वशीकुर रहमान बाबू की, जिनकी कट्टरपंथियों ने इसी साल हत्या कर दी। अविजित
और वशीकुर ने खुदको अभिव्यक्त करने के लिये ब्लॉगिंग को अपना माध्यम बनाया था। वे
खुली सोच के लोग थे, नई सोच के लोग थे, रूढीवादियों का विरोध करते थे और इसी की
कीमत उन्होने अपनी जान देकर अदा की। बांग्लादेश में ब्लॉगरों की हत्याएं दुखद हैं
और चिंता का विषय भी हैं, लेकिन इसने एक बात को रेखांकित किया है कि उस देश में
ब्लॉग अभिव्यकित का एक ताकतवर माध्यम बनकर उभरा है। इतना ताकतवर कि कट्टरपंथियों
और चरमपंथियों को उसके प्रभाव से खतरा महसूस होने लगा है और यही वजह है कि ब्लॉग
पर उठने वाली आवाजों को दबाने के लिये वे ब्लॉगर्स की हत्या कर रहे हैं। साल 2013
से अब तक बांग्लादेश में 3 प्रमुख ब्लॉगरों की हत्या हो चुकी है। सार्क के दूसरे
सदस्य राष्ट्रों में भी सरकारी और गैर सरकारी संगठनों ने ब्लॉगर्स को दबाने की
कोशिशें की हैं, उनका जीना मुहाल किया है, उन्हें डराया धमकाया गया है। ऐसे में
अविजित रॉय की हत्या के बाद और खुद अपनी हत्या से पहले वशीकुर रहमान के लिखे शब्द
याद आते हैं। वशीकुर रहमान ने अपने ब्लॉग में लिखा था- शब्दों की हत्या नहीं हो
सकती। एक अविजित रॉय की हत्या लाखों अविजित रॉय को जन्म देगी। हम तब तक लिखना बंद
नहीं करेंगे जब तक कि तुम्हारी धर्मांधता नहीं मरती।
इस
मौके पर मैं अपने इन शहीद हुए साथियों को श्रधदांजलि अर्पण करता हूं और उनकी आत्मा
को यकीन दिलाना चाहता हूं कि ब्लॉगर्स की आवाज मरेगी नहीं। मैं अविजित रॉय, वशीकुर
रहमान और अहमद राजिब हैदर जैसे उन तमाम ब्लॉगर्स के साथ हूं जो दमनकारी सियासत,
धर्मांधता और सामाजिक कुरीतियों के खिलाफ अपने ब्लॉग के जरिये लडाई लड रहे हैं।
मेरी आप सभी से भी गुजारिश है कि इस मंच के माध्यम से हम ऐसे तमाम ब्लॉगरों की
आवाज को बुलंद करें और ब्लॉगरों को दबाने वाली शकितयों के खिलाफ संघर्ष करें।
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प्रणाम