संजय तू बातों से मानेगा या…? मुन्नाभाई की कहानी, जेलर की जुबानी।


अंग्रेजी हूकूमत के दौर में बनाई गई मुंबई की आर्थर रोड जेल अपनी चारदीवारी के बीच एक इतिहास समेटे है। अगर बीते डेढ दो दशक की ही बात करें तो आर्थर रोड जेल में ऐसी शख्ससियतें कैदी बनकर आ चुकीं हैं जो कि मुंबई में खूनखराबे, आतंक और खौफ के लिये जिम्मेदार रहीं। ऐसे लोगों से जेल में सामना होता था महाराष्ट्र जेल की डीआईजी स्वाती साठे का जो कि 2 बार इस कुख्यात आर्थर रोड जेल की सुपिरिंटेंडेंट रह चुकीं हैं। स्वाती साठे के कार्यकाल में अरूण गवली, अबू सलेम, मुस्तफा दोसा, याकूब मेमन, अजमल कसाब, अश्विन नाईक जैसे खतरनाक नाम तो उनके कैदी बने ही साथ ही गैरकानूनी हथियार रखने के गुनहगार फिल्मस्टार संजय दत्त को भी सबसे लंबे वक्त तक उन्होने ही जेल में देखा।

Swati Sathe, DIG (Prisons), Maharashtra.

एक फिल्मी हस्ती जो ऐशोआराम की जिंदगी जी रहा हो, जो महंगी विदेशी शराब पीता हो, जिसका खाना सात सितारा रेसतरां में होता हो, जो चलते वक्त लाखों के कपडे, घडी और चैन से लदा हुआ होता हो, उसे अगर अचानक जेल की कांटोभरी जिंदगी जीने के लिये कह दिया जाये तो इस बदलाव से वो कैसे संघर्ष करता है, ये स्वाती साठे ने करीब से देखा है संजय दत्त में।

जेल ऐसी जगह है जहां भ्रष्टाचार के लिये खूब जगह है।कैदी जेल में सुख सुविधाएं पाने के लिये जेल अधिकारियों को मोटी कीमत देने को तैयार रहते हैं। संगठित अपराध के गिरोह का तो एक पूरा सिस्टम काम करता है जेल क स्टाफ को खुश करने में ताकि गिरोह के सदस्यों को जेल जेल न लगे, उन्हें मनपसंद खाना मिले, शराब मिले, ड्रग्स मिले, मोबाइल फोन मिले। जेल में होने वाले भ्रष्टाचार के कई मामलों का आये दिन मीडिया के मार्फत खुलासा होते रहता है। कई बार कोई सख्त अफसर आया जो रिश्वत नहीं लेता तो उसके खिलाफ डर का इस्तेमाल किया जाता है। उसे जान से मारने से लेकर तबादला करवा देने तक का डर दिखाया जाता है। जो डर जाता है वो चुप बैठता है। स्वाती साठे की इमेज चुप बैठने वाले अफसरों में नहीं थी। उनके कार्यकाल के दौरान आर्थर रोड जेल में किसी गैंगस्टर के बजाय उनका खौफ होता था। अपनी सख्त और ईमानदार छवि की वजह से साठे ने जेल महकमें में अपनी अलग पहचान बनाई थी। इन्हीं नो नॉनसेंस स्वाती साठे से सामना हुआ था संजय दत्त का।


बात तब की है जब टाडा अदालत में संजय दत्त को 6 साल जेल की सजा सुनाये जाने के बाद उन्हें आर्थर रोड जेल में लाया गया। संजय दत्त 1993 में पहले भी इस जेल के कैदी रह चुके थे।चूंकि आर्थर रोड जेल ऐसे कैदियों की जेल है जिनके खिलाफ मुकदमा चल रहा हो इसलिये सजायाफ्ता होने के कारण संजय दत्त को इस जेल से दूसरी जगह भेजा जाना था...लेकिन जब तक संजय दत्त के लिये दूसरी जेल मुकर्रर हो तब तक उन्हें कुछ वक्त के लिये यहीं रखने का फैसला किया गया। संजय दत्त को जेल में लाये जाने के बाद नियम के मुताबिक जेल का वो यूनिफॉर्म पहनने को कहा गया जो कि हर कैदी पहनता है। ये यूनिफॉर्म सफेद रंग की थी जिसकी कीमत बाजार में लगभग 100 रूपये की होगी। खुद को 6 साल जेल की सजा सुनाये जाने के बाद संजय दत्त सदमें में थे।आंखें डबडबा रहीं थीं, ऐसे में जब उन्हें ये यूनिफॉर्म पहनने को कहा गया तो वो अपना आपा खो बैठे। दत्त ने चिल्लाकर कहा कि वो यूनिफॉर्म नहीं पहनेंगे। जेल के कर्मचारी उन्हें विनम्रता से समझाने लगे कि नियमों के मुताबिक ये जरूरी है...लेकिन दत्त जिद पर अड गये...नहीं पहनूंगा...नहीं पहनूंगा...नहीं पहनूंगा। निचले दर्जे के जेल अधिकारी हिम्मत नहीं जुटा पा रहे थे कि वो इतने बडे फिल्मस्टार के साथ सख्ती से पेश आयें जिसकी बहन प्रिया दत्त केंद्र और राज्य की सत्तासीन कांग्रेस पार्टी की सांसद भी थी।


जेल अधिकारी स्वाती साठे के केबिन में पहुंचे और बताया कि संजय दत्त यूनिफॉर्म नहीं पहन रहा है।कोई बात सुनने के लिये तैयार नहीं है।स्वाती साठे ने तय किया कि इस मामले को अब वे अपने हाथ में लेंगीं। वे तुरंत संजय दत्त के बैरक में पहुंचीं। साठे का चेहरा गुस्से से तमतमाया हुआ था। संजय दत्त भी स्वाती साठे के मिजाज से परिचित थे। स्वाती साठे को अपने बैरक में देख उनके भी हाव भाव बदल गये। स्वाती साठे ने दत्त की आंख में आंख डालकर उनकी ओर अपनी छडी दिखाते हुए कहा संजय तू बातों से मानेगा या लातों से ? इस सवाल के साथ वो कुछ पलों तक दत्त का चेहरा देखतीं रहीं। दत्त ने अपनी नजरें झुका लीं। उन्हें उम्मीद नहीं की थी कि उनके साथ जेल में ऐसा भी हो सकता है। स्वाती साठे ने आगे कुछ नहीं कहा और बैरक से बाहर चलीं गईं। संजय दत्त ने खामोश रहते हुए यूनिफॉर्म पहन ली।

Comments

Hungry Mind said…
Nice to hear the story. Last line and para were really interesting to know..thanks for sharing..

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