हमारा सिर बचाने के लिये अपना सिर गंवाती पुलिस !
पुलिस क्या है ? समाज के बीच से समाज की सुरक्षा के लिये चुने गये चंद
लोगों की एक संस्था। किसी पुलिसकर्मी की हत्या, समाज की आत्मा पर आघात है। आज
पुलिसकर्मी हमारे कश्मीर को भारत से जोडे रखने के संघर्ष में भी मारा जा रहा है और
मुंबई में ट्राफिक नियमों पर अमल करवाने के लिये भी। दोनो मामलों में मैं समानताएं
देखता हूं। भारत माता की तस्वीर में जहां माता का सिर दिखता है नक्शे में उस जगह
पृष्ठभूमि में कश्मीर होता है। मुंबई में जिन पुलिसकर्मी विलास शिंदे की हत्या हुई
वो हेलमेट पहनने वाले नियम पर अमल करवा रहे थे। हेलमेट पहनने का वो नियम जो वाहन
चालक की सिर की सलामती के लिये बनाया गया था। लोग हेलमेट पहनकर दुपहिया चलायें तो
उनका सिर सलामत रहे। दोनो मामलों की तुलना का उद्देश्य इतना ही है कि आज पुलिस कहीं
देश के शरीर का सिर बचाने के लिये जान दे रही है तो कहीं नागरिकों का सिर बचाने के लिये अपना सिर फोडवा रही है। दुखद है कि
हम मौजूदा हो हल्ले के चंद दिनों बाद विलास शिंदे जैसे शहीदों को भूल जायेंगे और
उनका नाम भी सिर्फ ड्यूटी पर मारे गये पुलिसकर्मियों के आंकडे में सिमट कर रह
जायेगा, जैसा कि कश्मीर में मरने वाले पुलिसकर्मियों के साथ होता रहा है। ऐसा न हो
इसके लिये हमें सतत सोचना होगा न कि अगले विलास शिंदे की हत्या पर ! पुलिस की खराब छवि, भ्रष्टाचार, लापरवाही वगैरह पर
हर कोई घंटों बोल सकता है...लेकिन अति सामन्यीकरण से बाहर निकल देखने पर पता चलता
है कि सभी वैसे नहीं है जैसा कि उन्हें देखा जाता है। पुलिस अपनी कहानी नहीं सुना
सकती...लेकिन क्या पुलिस की आवाज उसे जन्म देने वाले समाज के दूसरे अंग नहीं बन
सकते। छोटा बच्चा जब भूख से रोता है तब मां उसे दूध पिलाती है, लेकिन हमारी पुलिस
समाज का ऐसा बच्चा है जिसे रोने की भी इजाजत नहीं है। (www.jitendradiary.blogspot.com)
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