के.पी.रघुवंशी का तबादला: अहसान फरामोशी की मिसाल
एक कर्तव्यनिष्ठ, हिम्मती, ईमानदार और सूझबूझ वाले पुलिस अधिकारी के साथ हमारी राजनीतिक व्यवस्था क्या सलूक करती है उसकी एक मिसाल आज देखने मिली। साथ ही फिर एक बार सत्ताधारी राजनेताओं ने ये साबित कर दिया कि वे Use & throw की गंदी रणनीति में यकीन रखते हैं।महाराष्ट्र Anti Terrorist Squad (ATS) के प्रमुख के.पी.रघुवंशी आज आखिरी बार अपने दफ्तर गये। सरकारी आदेश के मुताबिक उन्होने अपना चार्ज दस्ते के नये मुखिया राकेश मारिया को सौंप दिया। वैसे तो जल्द ही रघुवंशी का तबादला सामान्य तौर पर ATS से होना ही था..लेकिन उनका इस तरह से हटाया जाना काफी चौकानेवाला है...खासकर मेरे जैसे पत्रकारों के लिये जो रघुवंशी को, उनके काम करने के तरीके को और उनकी शख्सियत को कई सालों से जानते हैं।
के.पी.रघुवंशी को हटाये जाने की घटना से मुझे दुख भी है और रोष भी। दुख इस वजह से कि एटीएस को दिनरात एक करके खडे करने वाले अफसर को इस तरह से फोर्स से हटाया गया और रोष सत्ताधारी राजनेताओं और अपने ही व्यावयायिक सहयोगियों यानी कि इलेक्ट्रोनिक मीडिया पर।
रघुवंशी को एटीएस से सिर्फ एक छोटी सी गलती की वजह से हटना पडा और थोडा गहराई से देखे तो ये गलती भी न थी। 2 हफ्ते पहले एटीएस ने 2 संदिग्ध लोगों को गिरफ्तार किया था जिनपर शक था कि वे ओनजीसी समेत मुंबई के कई ठिकानों का निशाना बनाने की साजिश का हिस्सा हैं और जिनके आका पाकिस्तान में हैं। ये खबर मीडिया में फैली..लेकिन चैनल पर खबर चलाने से पहले जरूरी था कि कोई पुलिस अधिकारी अधिकृत तौर पर इसकी पृष्टि करे। सभी चैनल और अखबारों के पत्रकार बार बार फोन और एसएमएस करके रघुवंशी से कैमरे पर बाईट देने की फरियाद करने लगे। मीडिया से लगातार हो रही गुजारिश से रघुवंशी दबाव में आ गये और उन्होने सीमित जानकारी कैमरे पर पत्रकारों को दी। कैमरे पर दी गई यही जानकारी उनके लिये मुसीबत बन गई।
रघुवंशी की टीवी चैनलों पर बाईट देखने के बाद केंद्रीय गृहमंत्रालये ने आपत्ती जताई और महाराष्ट्र सरकार से मामले की जानकारी मीडिया में लीक करने के आरोप में रघुवंशी के खिलाफ कार्रवाई करने को कहा। केंद्र से पडे इसी दबाव के तहत महाराष्ट्र सरकार ने एटीएस से रघुवंशी का तबादला कर दिया। हालांकि महाराष्ट्र सरकार ने सफाई दी कि ये तबादला रूटीन है और रघुवंशी को ज्यादा अहम पद पर भेजा गया है..लेकिन महकमें में सभी को ये मालूम था कि रघुवंशी का तबादला एक सजा के तौर पर किया गया है।
इस मामले में मेरी पूरी सहानुभूति के.पी.रघुवंशी के साथ है। उनके साथ सरासर नाइंसाफी हुई है। रघुवंशी ने जो भी बातें उस रविवार मीडिया को बताईं थीं उनमें से कुछ भी गोपनीय नहीं था। सभी बातें या तो एफआईआर या फिर रिमांड एप्लिकेशन का हिस्सा थीं जो कि कोई भी आम आदमी हासिल करके पढ सकता है। उस दिन मीडियावालों को रघुवंशी ने खुद नहीं बुलाया था, कोई प्रेस कांफ्रेंस नहीं ली थी बल्कि मीडिया खुद उनके पास गई थी। रघुवंशी की इमेज ऐसे अधिकारियों की न थी जो कि स्व प्रचार के भूखे हों और अक्सर कैमरे पर अपनी पीठ थपथपाते हों। ऐसे में मेरे अनुमान से मीडिया अफवाहों को खबर के तौर पर न पेश करे और गलत जानकारी न चलाये इस इरादे से वे कैमरे पर बात करने को तैयार हुए थे। ऐसे में क्या ये इतनी बडी गलती थी कि केंद्रीय गृहमंत्रालय ने उनको एटीएस से हटाने की ही सिफारिश कर डाली। शर्म तो खुद केंद्रीय एजेंसियों के अफसरों को आनी चाहिये जो कि आधी-अधूरी और अस्पष्ट खुफिय़ा जानकारी पुलिस को देकर अपना पल्ला झाड लेते हैं। अगर ऐसा नहीं होता तो पुणे में धमाका भी न होता...ये केंद्रीय एजेंसियों की ही ढिलाई, कामचोरी और दूसरों के सिर ठीकरा फोडनेवाले रवैया का नतीजा था कि आतंकी अपने मकसद में कामियाब हुए। ऐसे अफसरों के खिलाफ केंद्रीय गृहमंत्रालय सख्त कार्रवाई क्यों नहीं करता? गैरजिम्मेदारी उन्हें सिर्फ रघुवंशी में ही क्यों नजर आई?
इस पूरे मामले में महाराष्ट्र सरकार की भूमिका भी शर्मनाक है। अपने काबिल अफसरों में से एक रघुवंशी की ढाल बनने के बजाय केंद्र के दबाव में आकर राज्य सरकार ने उन्हीं पर तलवार चला दी थी। सरकार की इस हरकत में अहसान फरामोशी की बू आती है। जब एटीएस का गठन किया गया था तब भी कांग्रेस एनसीपी की यही सरकार थी। 2 बडे आईपीएस अफसर एटीएस प्रमुख बनने के लिये लड रहे थे। ऐसे में रघुवंशी को उनकी काबिलियत की बदौलत सरकार ने एटीएस प्रमुख बनाया था और इस तरह से आईपीएस अफसरों के बीच चल रहे गैंगवार को रोका था। रघुवंशी ने ही एटीएस की बुनियाद खडी की, उसे एक पहचान दी और जो भी मामले एटीएस के सामने आये उनकी तहकीकात में जान लडा दी। 26-11-2008 को जब तत्कालीन एटीएस प्रमुख हेमंत करकरे शहीद हुए तो उसके बाद कोई भी आईपीएस अफसर एटीएस प्रमुख की कुर्सी संभालने को तैयार नहीं था। ऐसे में फिर एक बार सरकार को रघुवंशी ही नजर आये। रघुवंशी ने फिर एक बार ऐसी कुर्सी संभाली जो अब पुलिस महकमें में “अशुभ” के तौर पर बदनाम हो चुकी थी...लेकिन जो रघुवंशी को जानते हैं उन्हें ये पता है कि रघुवंशी ने अपने पुलिसिया करियर में अक्सर ऐसे पदों को अपनाया है जिनसे कि बाकी अफसर दूर भागते थे...महाराष्ट्र सरकार ये भूल गई कि 1992-93 के मुंबई दंगों पर श्रीकृष्ण आयोग की रिपोर्ट पर जांच और कार्रवाई के लिये बनाये गये SPECIAL TASK FORCE के मुखिया यही रघुवंशी ही थे और उस पद रहते हुए इन्हें अपने ही महकमें के कई वरिष्ठ, रिटायर्ड और मौजूदा अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई करनी पडी थी...उन्हें गिरफ्तार करना पडा था। इस “गंदे काम” के लिये कोई दूसरा अफसर तैयार नहीं था।
रघुवंशी के एटीएस से तबादले की खबर को कई न्यूज चैनलों ने बडे चटकारे ले लेकर दिखाया और उनके वहां से हटने पर इस तरह के SLUGS और SCROLLS चलाये जिन्हें देखने पर निश्चित ही रघुवंशी दुखी और अपमानित महसूस कर रहे होंगे।मैं अपनी बिरादरी के लोगों को याद दिलाना चाहूंगा कि आज जिस “अपराध” के लिये रघुवंशी को सजा दी गई वो “अपराध” तो उन्होने आप ही के कहने पर किया था। इलेक्ट्रोनिक मीडिया ने उनके समर्थन में आवाज उठा कर सरकार को घेरने के बजाय सरकार की अहसान फरामोशी में साथ दिया। मीडिया ने भी जो किया वो बिलकुल शर्मानक है।
के.पी.रघुवंशी कभी किसी POWER STRUGGLE में नहीं रहे और न हीं उन्होने किसी महत्वकांक्षा के वश में आकर कोई गलत काम किया। उनपर कभी भ्रष्टाचार का आरोप नहीं लगा। न तो रघुवंशी ने किसी राजनेता की चाटुकारिता की और न ही कोई खास पद हासिल करने के लिये अपने “फाईनेंसरों का नेटवर्क” तैयार किया। भ्रष्टाचार, चाटुकारिता, अंदरूनी गैंगवार से ग्रस्त महाराष्ट्र पुलिस को रघुवंशी जैसे अफसरों की जरूरत है। अफसोस कि ऐसे अफसरों की हौसला अफजाई के बजाय उन्हें हतोत्साहित और अपमानित किया जा रहा है।
के.पी.रघुवंशी को हटाये जाने की घटना से मुझे दुख भी है और रोष भी। दुख इस वजह से कि एटीएस को दिनरात एक करके खडे करने वाले अफसर को इस तरह से फोर्स से हटाया गया और रोष सत्ताधारी राजनेताओं और अपने ही व्यावयायिक सहयोगियों यानी कि इलेक्ट्रोनिक मीडिया पर।
रघुवंशी को एटीएस से सिर्फ एक छोटी सी गलती की वजह से हटना पडा और थोडा गहराई से देखे तो ये गलती भी न थी। 2 हफ्ते पहले एटीएस ने 2 संदिग्ध लोगों को गिरफ्तार किया था जिनपर शक था कि वे ओनजीसी समेत मुंबई के कई ठिकानों का निशाना बनाने की साजिश का हिस्सा हैं और जिनके आका पाकिस्तान में हैं। ये खबर मीडिया में फैली..लेकिन चैनल पर खबर चलाने से पहले जरूरी था कि कोई पुलिस अधिकारी अधिकृत तौर पर इसकी पृष्टि करे। सभी चैनल और अखबारों के पत्रकार बार बार फोन और एसएमएस करके रघुवंशी से कैमरे पर बाईट देने की फरियाद करने लगे। मीडिया से लगातार हो रही गुजारिश से रघुवंशी दबाव में आ गये और उन्होने सीमित जानकारी कैमरे पर पत्रकारों को दी। कैमरे पर दी गई यही जानकारी उनके लिये मुसीबत बन गई।
रघुवंशी की टीवी चैनलों पर बाईट देखने के बाद केंद्रीय गृहमंत्रालये ने आपत्ती जताई और महाराष्ट्र सरकार से मामले की जानकारी मीडिया में लीक करने के आरोप में रघुवंशी के खिलाफ कार्रवाई करने को कहा। केंद्र से पडे इसी दबाव के तहत महाराष्ट्र सरकार ने एटीएस से रघुवंशी का तबादला कर दिया। हालांकि महाराष्ट्र सरकार ने सफाई दी कि ये तबादला रूटीन है और रघुवंशी को ज्यादा अहम पद पर भेजा गया है..लेकिन महकमें में सभी को ये मालूम था कि रघुवंशी का तबादला एक सजा के तौर पर किया गया है।
इस मामले में मेरी पूरी सहानुभूति के.पी.रघुवंशी के साथ है। उनके साथ सरासर नाइंसाफी हुई है। रघुवंशी ने जो भी बातें उस रविवार मीडिया को बताईं थीं उनमें से कुछ भी गोपनीय नहीं था। सभी बातें या तो एफआईआर या फिर रिमांड एप्लिकेशन का हिस्सा थीं जो कि कोई भी आम आदमी हासिल करके पढ सकता है। उस दिन मीडियावालों को रघुवंशी ने खुद नहीं बुलाया था, कोई प्रेस कांफ्रेंस नहीं ली थी बल्कि मीडिया खुद उनके पास गई थी। रघुवंशी की इमेज ऐसे अधिकारियों की न थी जो कि स्व प्रचार के भूखे हों और अक्सर कैमरे पर अपनी पीठ थपथपाते हों। ऐसे में मेरे अनुमान से मीडिया अफवाहों को खबर के तौर पर न पेश करे और गलत जानकारी न चलाये इस इरादे से वे कैमरे पर बात करने को तैयार हुए थे। ऐसे में क्या ये इतनी बडी गलती थी कि केंद्रीय गृहमंत्रालय ने उनको एटीएस से हटाने की ही सिफारिश कर डाली। शर्म तो खुद केंद्रीय एजेंसियों के अफसरों को आनी चाहिये जो कि आधी-अधूरी और अस्पष्ट खुफिय़ा जानकारी पुलिस को देकर अपना पल्ला झाड लेते हैं। अगर ऐसा नहीं होता तो पुणे में धमाका भी न होता...ये केंद्रीय एजेंसियों की ही ढिलाई, कामचोरी और दूसरों के सिर ठीकरा फोडनेवाले रवैया का नतीजा था कि आतंकी अपने मकसद में कामियाब हुए। ऐसे अफसरों के खिलाफ केंद्रीय गृहमंत्रालय सख्त कार्रवाई क्यों नहीं करता? गैरजिम्मेदारी उन्हें सिर्फ रघुवंशी में ही क्यों नजर आई?
इस पूरे मामले में महाराष्ट्र सरकार की भूमिका भी शर्मनाक है। अपने काबिल अफसरों में से एक रघुवंशी की ढाल बनने के बजाय केंद्र के दबाव में आकर राज्य सरकार ने उन्हीं पर तलवार चला दी थी। सरकार की इस हरकत में अहसान फरामोशी की बू आती है। जब एटीएस का गठन किया गया था तब भी कांग्रेस एनसीपी की यही सरकार थी। 2 बडे आईपीएस अफसर एटीएस प्रमुख बनने के लिये लड रहे थे। ऐसे में रघुवंशी को उनकी काबिलियत की बदौलत सरकार ने एटीएस प्रमुख बनाया था और इस तरह से आईपीएस अफसरों के बीच चल रहे गैंगवार को रोका था। रघुवंशी ने ही एटीएस की बुनियाद खडी की, उसे एक पहचान दी और जो भी मामले एटीएस के सामने आये उनकी तहकीकात में जान लडा दी। 26-11-2008 को जब तत्कालीन एटीएस प्रमुख हेमंत करकरे शहीद हुए तो उसके बाद कोई भी आईपीएस अफसर एटीएस प्रमुख की कुर्सी संभालने को तैयार नहीं था। ऐसे में फिर एक बार सरकार को रघुवंशी ही नजर आये। रघुवंशी ने फिर एक बार ऐसी कुर्सी संभाली जो अब पुलिस महकमें में “अशुभ” के तौर पर बदनाम हो चुकी थी...लेकिन जो रघुवंशी को जानते हैं उन्हें ये पता है कि रघुवंशी ने अपने पुलिसिया करियर में अक्सर ऐसे पदों को अपनाया है जिनसे कि बाकी अफसर दूर भागते थे...महाराष्ट्र सरकार ये भूल गई कि 1992-93 के मुंबई दंगों पर श्रीकृष्ण आयोग की रिपोर्ट पर जांच और कार्रवाई के लिये बनाये गये SPECIAL TASK FORCE के मुखिया यही रघुवंशी ही थे और उस पद रहते हुए इन्हें अपने ही महकमें के कई वरिष्ठ, रिटायर्ड और मौजूदा अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई करनी पडी थी...उन्हें गिरफ्तार करना पडा था। इस “गंदे काम” के लिये कोई दूसरा अफसर तैयार नहीं था।
रघुवंशी के एटीएस से तबादले की खबर को कई न्यूज चैनलों ने बडे चटकारे ले लेकर दिखाया और उनके वहां से हटने पर इस तरह के SLUGS और SCROLLS चलाये जिन्हें देखने पर निश्चित ही रघुवंशी दुखी और अपमानित महसूस कर रहे होंगे।मैं अपनी बिरादरी के लोगों को याद दिलाना चाहूंगा कि आज जिस “अपराध” के लिये रघुवंशी को सजा दी गई वो “अपराध” तो उन्होने आप ही के कहने पर किया था। इलेक्ट्रोनिक मीडिया ने उनके समर्थन में आवाज उठा कर सरकार को घेरने के बजाय सरकार की अहसान फरामोशी में साथ दिया। मीडिया ने भी जो किया वो बिलकुल शर्मानक है।
के.पी.रघुवंशी कभी किसी POWER STRUGGLE में नहीं रहे और न हीं उन्होने किसी महत्वकांक्षा के वश में आकर कोई गलत काम किया। उनपर कभी भ्रष्टाचार का आरोप नहीं लगा। न तो रघुवंशी ने किसी राजनेता की चाटुकारिता की और न ही कोई खास पद हासिल करने के लिये अपने “फाईनेंसरों का नेटवर्क” तैयार किया। भ्रष्टाचार, चाटुकारिता, अंदरूनी गैंगवार से ग्रस्त महाराष्ट्र पुलिस को रघुवंशी जैसे अफसरों की जरूरत है। अफसोस कि ऐसे अफसरों की हौसला अफजाई के बजाय उन्हें हतोत्साहित और अपमानित किया जा रहा है।
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