अपना गुडलक किधर है भाय?- आर.टी.आई का काला सच।

बीते हफ्ते खबर आई कि एक आर.टी.आई कार्यकर्ता की राजस्थान में ग्राम सरपंच ने पीट पीटकर हत्या कर दी क्योंकि उसने सरपंच के कई घोटालों का पर्दाफाश किया था। ये कोई पहला मौका नहीं है जब किसी आर.टी.आई कार्यकर्ता को जनहित के लिये उसकी ओर से जुटाई गई जानकारी के लिये मारा गया हो। आर.टी.आई ने जहां एक ओर बडी हद तक सरकारी महकमों में भ्रष्टाचार कम करने में मदद की है तो वहीं सूचना के अधिकार का इस्तेमाल करने वाले हिंसा की भी भेंट चढे हैं। जाहिर है इस तरह की वारदातें इस क्रांतिकारी कानून का इस्तेमाल करने वालों के खौफजदा भी कर रहीं है और हतोत्साहित भी...लेकिन आर.टी.आई कार्यकर्ताओं का एक अलग वर्ग भी है, एक अलग चेहरा भी है जिससे मैं आपको मुखातिब कराना चाहता हूं। आर.टी.आई का ये चेहरा खासकर मुंबई में देखने मिलता है।

मुंबई का लगभग हर बिल्डर एक गुप्त रजिस्टर रखता है। इस रजिस्टर में ऐसे लोगों के नाम की लिस्ट होती है जिन्हें किसी इमारत बनाने के प्रोजक्ट के दौरान बतौर रिश्वत उन्हें एक तय रकतम देनी पडती है। रजिस्टर में एक लिस्ट होती है स्थानीय राजनेताओं की जिनमें इलाके के पार्षद, विधायक और तमाम बडी पार्टियों के स्थानीय पदाधिकारी शामिल होते हैं, एक लिस्ट होती है स्थानीय पुलिस कर्मियों की जिनमें बीट कांस्टेबल से लेकर इलाके के डीसीपी तक के नाम होते हैं, एक लिस्ट होती है जिनमें बीएमसी के तमाम अलग अलग विभाग के अफसरों के नाम होते हैं, एक लिस्ट होती है फायर ब्रिगेड अफसरों की, एक लिस्ट होती है स्थानीय छुटभैये पत्रकारों की, एक लिस्ट होती है इलाके के गुंडों की जिनका बिल्डर अक्सर जमीन हथियाने के लिये या किसी को डराने के लिये इस्तेमाल करते हैं और एक लिस्ट होती है आर.टी.आई कार्यकर्ताओं की। दक्षिण मुंबई में रहने वाले एक मित्र, जो कि वहां के एक बिल्डर का परिचित है के मुताबिक इलाके के हर बिल्डर की लिस्ट में कम से कम 15 तथाकथित आर.टी.आई कार्यकर्ताओं के नाम होते हैं। प्रोजेक्ट शुरू होने की भनक लगते ही ये कार्यकर्ता बिल्डर के पास पहुंच जाते हैं अपना गुडलकमांगने (मुंबईया जुबान में इसे तोडपानी भी कहते हैं)। प्रोजेक्ट के आकार के मुताबिक बिल्डर को हर आर.टी.आई कार्यकर्ता को 5 से 25 हजार रूपये का लिफाफा थमाना पडता है। लिफाफा न मिलने पर कोई भी कार्यकर्ता नई इमारत खडी करने के बिल्डर के गुडलकको बैडलकमें तब्दील कर सकता है। पैसे न मिलने पर आर.टी.आई कार्यकर्ता सूचना का अधिकार का इस्तेमाल कर बीएमसी अफसरों, फायर ब्रिगेड और पुलिस से ऐसे सवाल पूछते हैं, जिनका जवाब देना संबधित अफसरों को भारी पड सकता है। मसलन 7 मंजिल से ऊपर की इमारत में फायर रेस्यू एरिया होना जरूरी है, लेकिन कई बिल्डर वो नहीं बनाते। आर.टी.आई कार्यकर्ता ऐसे में बीएमसी और फायर ब्रिगेड से सवाल करते हैं कि आखिर इमारत को मंजूरी क्यों दी गई? ऐसे में ये अफसर ही बिल्डर पर दबाव डालते हैं कि वो आर.टी.आई कार्यकर्ता की जेबें गर्म करके उसका मुंह बंद करे। कई बार बिल्डर एक दूसरे के खिलाफ भी इन आर.टी.आई कार्यकर्ताओं का इस्तेमाल करते हैं।

आर.टी.आई का इस्तेमाल करना बडा आसान है। बस एक बार पूरी प्रक्रिया समझने की जरूरत है। आर.टी.आई के इस्तेमाल के लिये आपको ज्यादा पढे-लिखे होने की जरूरत भी नहीं है। यही वजह है कि अबसे चंद साल पहले तक आपके मोहल्ले का जो चरसी लोगों से उधार मांग कर या छोटी मोटी चोरी चकारी करके अपना काम चलाता था आज वो खुद को आर.टी.आई कार्यकर्ता कहता है और आलीशान गाडी में घूमता है, बडे ब्रैंड के कपडों और सोने की मोटी चैन और अंगूठियों से लदा दिखता है। मैं कुछेक ऐसे आर.टी.आई कार्यकर्ताओं को भी जानता हूं जिनका आपराधिक रिकॉर्ड रहा है और जो जेल में दिन गुजार कर आये हैं। इन लोगों ने अब एक छोटासा गिरोह बना लिया है जो नये लडकों को आर.टी.आई करना सिखाते हैं या ये कहें कि आर.टी.आई के माध्यम से वसूली करना सिखाते हैं। दक्षिण और मध्य मुंबई के कई ऐसे इलाके हैं जहां हर गली में एक-दो तथाकथित आर.टी.आई कार्यकर्ता आपको मिल जायेंगे।


मुंबई शहर में कई अच्छे आर.टी.आई कार्यकर्ता मौजूद हैं जैसे समीर जवेरी, चेतन कोठारी, कृष्णा राव, अनिल गलगली और सुलेमान भिमानी, जिनके जरिये जुटाई गई जानकारियों ने वाकई में कई घोटालों और अनियमितताओं का पर्दाफाश किया है और भ्रष्ट अफसरों की नींद उडाई है, लेकिन जैसा कि हमारे देश में हर सकारात्मक प्रयोग के साथ होता आया है, वही आर.टी.आई के साथ भी हो रहा है। जिस कानून को अच्छी नीयत और सकारात्मक बदलाव की उम्मीद के साथ लाया गया आज वो अपराधियों और वसूलीखोरों का हथियार बन गया है। अगर ऐसा ही चलता रहा तो जल्द ही ये कानून अपनी धार खो देगा और इसका इस्तेमाल करने वाले सच्चे लोग अपना सम्मान। इन तथाकथित आर.टी.आई कार्यकर्ताओं को गुडलकमिलना बंद न हुआ तो देश का गुडलक छिन सकता है। 

Comments

Anil Galgali said…
Really good one article on RTI movement. Now for someone its become income source
@popat.kurne said…
Rti ka kala sach nahi ye to kalekarname ka sach hai
Pradeep Yadav said…
This comment has been removed by the author.
Pradeep Yadav said…
Really good article on RTI. The real face RTI Activists, who use RTI for their monthly salary.

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