सफरनामा: श्रीलंका
साल 2004 में CNN की पूर्व भारत ब्यूरो प्रमुख अनीता प्रताप की लिखी किताब Island of Blood पढी थी। अनीता ने 1983 में LTTE प्रमुख प्रभाकरन का सबसे पहला इंटरव्यू किया था। जाफना में प्रभाकरन तक पहुंचने की कहानी और श्रीलंका के गृहयुद्ध के इतिहास का उन्होने अपनी किताब में बडा ही दिलचस्प ब्यौरा दिया है। उस किताब को पढकर मैं भी प्रेरित हुआ था कि अपने पत्रकारिता के करियर में मैं भी कभी प्रभाकरन तक पहुंचूं और उससे अपने सवाल पूछूं। मुझे खुद देखना था कि किस जज्बें के साथ वो तमिलों को श्रीलंकाई सरकार से जंग के लिये तैयार करता है, किस तरह लोग उसके कहने पर अपनी जान देने को तैयार हो जाते हैं...पर वो तो सिर्फ एक ख्वाब ही रह गया। 2005 से हिंदी न्यूज चैनलों का सबसे घृणित दौर शुरू हुआ। गंभीर खबरों के बजाय नाग-नागिन, खली पहलवान, राखी सावंत के ड्रामें, उडनतश्तरी, राधा बन नाचने वाले डीआईजी, भूत-प्रेत, अश्लील एमएमएस, शाहिद-करीना लिपलॉक जैसी खबरें हिंदी न्यूज चैनलों पर हावी हो गईं। ऐसे में प्रभाकरन के बारे में कोई क्यों सोचता ? 2009 तक जब हिंदी न्यूज चैनल अपने इस काले दौर से उबरे और गंभीर खबरों के प...