ऐसे ब्रेक हुई सलमान के हिट एंड रन की खबर !
(तमाम
उतार चढावों के बाद सलमान खान के हिट एंड रन का मुकदमा अब अपने अंजाम पर पहुंच रहा
है। 28 सितंबर की सुबह मैने इस खबर को ब्रेक किया था। उस वक्त मैं “आज तक” न्यूज चैनल के लिये काम करता था। ये खबर मेरे टीवी पत्रकारिता के करियर की
कुछ रोमांचक और यादगार कवरेजों में से एक है। पढिये 13 साल पहले कैसे ब्रेक हुई थी
ये खबर।)
28
सितंबर की सुबह करीब 6 बजने वाले थे। मैं मुंबई के मसजिद बंदर इलाके में अपने नाना
के घर पर सो रहा था। मोबाईल फोन की घंटी बजी। आंखें बिना पूरी खोले ही मैने कॉल
रिसीव किया। दूसरी ओर एक पुराना सूत्र था – “सो रहे हो क्या? रात को सलमान ने बांद्रा हिल रोड पर अपनी गाडी ठोंक दी है। 4-5 लोगों को
उडाया है। एक दो लोग मर भी गये लगता है। उसकी गाडी टोचन करके (टॉविंग वैन के
जरिये) अभी बांद्रा पुलिस स्टेशन के बाहर लेके आ रहे हैं”।
खबर
सुनते ही मैं उठ बैठा। तुरंत बांद्रा पुलिस थाने के एक परिचित अधिकारी को फोन
किया। कई बार कोशिश करने पर भी उसने फोन नहीं उठाया। खबर की आधिकारिक पृष्टि करनी
थी। मैने मुंबई पुलिस के कंट्रोल रूम को फोन किया। कंट्रोल रूम का फोन लगातार
व्यस्त आ रहा था। आखिर मैने उस इलाके के तत्कालीन डीसीपी बिपिनकुमार सिंह को फोन
किया। सिंह ने फोन उठाया और मेरे कुछ पूछने से पहले ही कहा- “जीतेंद्र। मैं घर से बांद्रा पुलिस स्टेशन ही जा रहा हूं। सलमान के कार के
एक्सीडैंट की खबर सही है, लेकिन डिटैल मैं वहीं पहुंच कर दे पाऊंगा”।
डीसीपी
ने खबर की पृष्टि कर दी थी। मैने दिल्ली में असाईनमेंट डेस्क को फोन करके इस बारे
में जानकारी दे दी, लेकिन खबर तुरंत न उतारने की गुजारिश की। मै चाहता था कि खबर
तस्वीरों के साथ उतरे। निवेदन मान लिया गया और तय हुआ कि जब तक मैं घटनास्थल की
तस्वीरें लेकर नहीं आता तब तक खबर नहीं दिखाई जायेगी। इस बीच अगर कोई दूसरा चैनल
ये खबर चलाता है तो मेरा भी फोनो लेकर चैनल पर खबर उतार दी जायेगी। मैने तुरंत
कैमरामैन गजाजन गूजर को फोन किया। (गूजर अब मराठी चैनल एबीपी माझा के तकनीकी विभाग
के मुंबई में प्रमुख है) वे मुंबई के उत्तरी उपनगर बोरीवली में रहते थे। मैने
उन्हें कहा कि वे लोकल ट्रेन पकड सीधे बांद्रा उतरें और बांद्रा पुलिस थाने पर
पहुंचें...लेकिन बिना कैमरे के गजानन गूजर बिना उस्तरे के हज्जाम होते! कैमरा तो नरीमन पॉइंट में आज
तक के ऑफिस में रखा था। मैने अपनी मोटरसाईकिल उठाई और नरीमन पॉइंट के ऑफिस पहुंचकर
कैमरा के बैग को गले में डाला। मोटरसाईकिल की मंजिल अब बांद्रा पुलिस थाने थी। आमतौर
पर इतनी बडी खबर पर निकलने से पहले मुझे अपने तत्कालीन ब्यूरो चीफ मिलिंद खांडेकर
को इत्तला करना चाहिये था, लेकिन उन दिनों मिलिंदजी की सेहत ठीक नहीं थी और ऐसी
हालत में इतनी सुबह उन्हें जगाना ठीक नहीं लगा।
मेरी
मोटरसाईकिल तुलसी पाईप रोड के रास्ते बांद्रा की ओर आगे बढी। उतनी सुबह सडक बिलकुल
खाली थी, न ज्यादा लोग थे और न ही वाहन। मैं 90 किलोमीटर की रफ्तार से आगे बढ रहा
था। मेरी मोटरसाईकिल कोई स्पोर्टस बाईक नहीं थी, बल्कि हीरो होंडा कंपनी की साधारण
स्पेलेंडर बाईक थी और ऐसी मोटरसाईकिल के लिये 90 किलोमीटर की रफ्तार बहुत ज्यादा
होती है। इस रफ्तार से मैने अपने जीवन में सिर्फ 2 बार ही मोटरसाईकिल चलाई है। एक
सलमान की इस खबर को ब्रेक करने के लिये और दूसरी बार ठाणे जेल में हर्षद मेहता की
मौत की खबर ब्रेक करने के लिये। लोअर परेल फ्लाईओवर से गुजरते वक्त बाईक हवा के
थपेडों से कांप रही थी। जरा सी भी फिसलन होने पर जान जाने का खतरा था। आज जब उस
सफर को याद करता हूं तो रोंगटे खडे हो जाते हैं, लेकिन 23 साल की उस उम्र में डर
का अहसास नहीं था क्योंकि तब रूह में जोश, जुनून और हिम्मत का आगाज ही हुआ था। आज मुझे
लगता है कि वो मेरा दुस्साहस था।
“आज तक” को 24 घंटे का न्यूज चैनल बने पौने 2 साल ही हुए थे। उस वक्त उसके 2 ही
प्रतिदव्ंदवी थे- जी न्यूज और स्टार न्यूज (जिसे NDTV चलाता था)।
आज तक ने अपना ध्येय वाक्य बना लिया था – “सबसे तेज” और
वाकई में बीते पौने 2 सालों में खबरों को सबसे पहले ब्रेक करने वाले चैनल के तौर
पर उसने अपनी पहचान बनाई। चैनल की उस संस्थापक टीम में भी यही जज्बा भरपूर था।
बतौर क्राईम रिपोर्टर मेरी कोशिश यही रहती कि मुंबई शहर की अपराध से जुडी हर खबर “आज तक” पर ही ब्रेक हो। सलमान खान की खबर भी मुझे ही ब्रेक
करनी है, इस भावना ने तेज रफ्तार से होने वाले खतरे के डर को दबा दिया था। करीब 20
मिनट में मैं नरीमन पॉइंट से बांद्रा पहुंचा।
डीसीपी
बिपिनकुमार सिंह बांद्रा पुलिस थाने से निकलकर जा ही रहे थे। कैमरामैन गजानन भी
वहां पहुंच गये। मैने डीसीपी को रोका और झटपट पुलिस थाने के बाहर ही उनका एक छोटा
सा इंटरव्यू कर लिया। इंटरव्यू में उन्होने बताया कि बीती रात सलमान खान की एसयूवी
लैंडक्रूजर का अमेरिकन एक्सप्रैस बेकरी के पास एक्सीडैट हुआ है। नुरूल्ला शरीफ नाम
के एक बेकरी मजदूर की मौत हो गई है जबकि 4 दूसरे मजदूर घायल हो गये हैं जिन्हें
भाभा अस्पताल में भर्ती कराया गया है। कार सलमान खान खुद ही चला रहे थे। वे फिलहाल
फरार हैं और पुलिस उनकी तलाश कर रही है।
मैं
घायलों से बात करने अस्पताल जाना चाहता था, लेकिन उसमें देर हो सकती थी। चैनल पर
जल्द से जल्द घटना की तस्वीरों के साथ खबर ब्रेक करनी थी। तस्वीरों के इंतजार में
चैनल ने भी खबर रोक रखी थी। ओबी वैन गुजरात गई हुई थी और दिल्ली को तस्वीरें नरीमन
पॉइंट में लगी 2 एमबी लाईन के जरिये ही भेजी जा सकतीं थी। मैने गजानन को भाभा
अस्पताल छोडा और मधु भाटिया नाम की रिपोर्टर को वहां पहुंचने के लिये फोन किया।
इसके बाद मोटरसाईकिल पर फिर उसी रफ्तार से नरीमन पॉइंट पहुंचा, हालांकि लौटते वक्त
सडक पर वाहनों की भीड होने लगी थी। 7 बजे के बुलेटिन में कार, घटनास्थल की
तस्वीरों, डीसीपी के इंटरव्यू और ज्यादा से ज्यादा जानकारी के साथ खबर ब्रेक हुई।
दिल्लीके असाईनमेंट डेस्क पर बैठे सहकर्मियों ने खबर ब्रेक करने के लिये बधाई दी।
ये एक बडी खबर थी और इसमें आज तक अपने प्रतिद्वंद्वियों से काफी आगे था। हां आज तक
में खबर उतरने के कुछ देर बाद ही जी न्यूज ने एक घायल मजदूर का फोनो चला दिया था।
एबीपी न्यूज में मेरी मौजूदा सहकर्मी विभा कौल भट्ट उस वक्त जी न्यूज में थीं।
भाभा अस्पताल पहुंचकर विभा ने उस मजदूर की अपने मोबाईल फोन के जरिये चैनल पर बात
करवा दी थी। इसके कुछ देर बाद ही मधु भाटिया ने भी कैमरे पर घायल मजदूरों के
इंटरव्यू कर लिये थे।
इस
बीच मिलिंदजी का फोन आया। मैने उन्हें पूरी जानकारी दी और कहा कि घर से नहा कर आने
के बाद मैं फिर पुलिस थाने पहुंच जाऊंगा। उनकी इजाजत मिलने के बाद मैं घर चला गया।
अपने बॉडीगार्ड शेरा के साथ सलमान खान |
करीब
साढे 10 बजे मैं फिरसे बांद्रा पुलिस थाने पहुंचा। अब तक वहां मीडिया का जमघट लग
चुका था। सभी राष्ट्रीय और स्थानीय चैनलों के कई कैमरे, अखबारों के फोटोग्राफर और
संवाददाताओं की भीड जुटी थी। सभी को लग रहा था कि पुलिस कभी भी सलमान को पकड कर
वहां ला सकती है, लेकिन सलमान का कुछ अता पता न था। वो अभी भी फरार था। पुलिस उसे
ढूंढने गैलैक्सी अपार्टमेंट्स भी गई, लेकिन वो मिला नहीं। हादसे को करीब 10 घंटे
होने आ रहे थे और सलमान खान जैसा शख्स मुंबई पुलिस को मिल नहीं रहा है, ये बात
मेरे गले नहीं उतर रही थी। मुझे ये भी पता था कि उस इलाके का एक एसीपी सलमान का
अच्छा दोस्त है। मैने सीधे पुलिस पर सवाल उठाते हुए एक वाक थ्रू किया कि क्या
मुंबई पुलिस सलमान को बचा रही है? क्या सलमान को सेलिब्रिटी होने का फायदा मिल रहा है? क्या सलमान
के साथ ढिलाई बरतने के लिये और मामले को रफा दफा करने के लिये पुलिस पर कोई
राजनीतिक दबाव है? मेरा
ये वाक थ्रू 2-3 बार चला जिसके कुछ देर बाद सलमान खान अपने वकील वारिस पठान (जो अब
MIM के
विधायक हैं) और बॉडीगार्ड शेरा के साथ पुलिस थाने में हाजिर हुआ। उसपर लापरवाही से
गाडी चलाने का आरोप लगाया गया लेकिन सलमान को ज्यादा वक्त थाने में नहीं गुजारना
पडा। कुछ देर बाद ही 950 रूपये की जमानत अदा करने पर सलमान को छोड दिया गया। पुलिस
थाने से बाहर निकलते वक्त फोटोग्राफर और कैमरामैन सलमान की तस्वीरों के लिये उसपर
टूट पडे। सलमान खुद को उनसे बचाते हुए अपनी कार की ओर आग बढा (दूसरी कार जिसमें वो
थाने आया था)। अचानक सलमान की नजर मेरी नजरों से टकराई और उसका चेहरा गुस्से से
लाल हो गया। वो जगह पर ही कुछ पलों के लिये खडा होकर मुझे एकटक देखने लगा, ठीक उसी
अंदाज में जैसे कोई फिल्मी हीरो, विलेन को देखता है। मुझे लगा कि अब ये शायद मुझसे
मरपीट करने आयेगा। मैं भी भिडने के लिये तैयार हो गया, लेकिन इससे पहले कि कुछ और
हो पाता शेरा और वारिस पठान ने सलमान को कार में ढकेला और वहां से निकल गये।
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