याकूब की लाश के साथ उडते वक्त...


30 जुलाई की सुबह 11 बजे नागपुर हवाई अड्डे से इंडिगो एयरलाईंस के विमान 6E 544 ने नागपुर से मुंबई के लिये उडान भरी। विमान अपने तय वक्त से आधे घंटे देर से उडा था। देरी की वजह थी कि इसी विमान से 12 मार्च 1993 के मुंबई बमकांड के मुजरिम याकूब मेमन का शव भी मुंबई लाया जा रहा था, जिसे 4 घंटे पहले ही नागपुर सेंट्रल जेल में फांसी दी गई थी। इसी विमान में याकूब के चचेरे भाई उस्मान और सगे भाई सुलेमान भी सफर कर रहे थे। उनके साथ 3 पुलिसकर्मियों की टीम थी। कुछेक खुफिया एजेंसियों के लोग भी विमान में सवार थे। पहले से मिली सूचना के आधार पर रिपोर्टर गणेश ठाकुर और मैंने भी इसी विमान में अपने कैमरामैन के साथ मुंबई लौटने की टिकट कटाई थी। हमारे अलावा मुंबई मिरर अखबार की एक रिपोर्टर और एक फोटो ग्राफर भी इसी विमान में थे।

Courtesy: Prakash Malavde, Mumbai Mirror

विमान के निचले हिस्से के कार्गो होल्ड में याकूब का शव रखा गया था। ऊपर यानी कि कैबिन की पिछली पंकित में उस्मान और सुलेमान बैठे हुए थे। उसमान एकटक खिडकी से बाहर की ओर देखते हुए रो रहे थे, जबकि सुलेमान के चहेरे पर कोई भाव नहीं थे। ज्यादातर वक्त सुलेमान सिर झुकाये बैठे रहे। सुलेमान ने मीडिया से कभी बात नहीं की थी, लेकिन उस्मान फांसी से हफ्तेभर पहले मेरे रिपोर्टर मयूर परिख से बात कर चुके थे और उन्होने बताया थे कि 1994 में काठमांडू में याकूब कि गिरफ्तारी के वक्त क्या घटनाक्रम हुआ था। उस्मान से बातचीत शुरू करने के इरादे से मैने उन्हें आवाज दी उस्मान भाई !”। खिडकी पर से उन्होने नजर हटाई और हाथ जोडते हुए बोले- प्लीजमैं बात नहीं करना चाहता। मुझे आगे कुछ कहना ठीक नहीं लगा और मैं वापस अपनी सीट पर आकर बैठ गया।

मुझे उस्मान से सहानुभूति थी। उस्मान सालों से याकूब मेमन की जिंदगी के लिये कानूनी जंग लड रहे थे। याकूब के कहने पर उस्मान ही उसके परिवार को लाने दुबई गये। इसके बाद फांसी की सजा माफ कराने के लिये दिल्ली और नागपुर के अनगिनत चक्कर काटे। याकूब की मां और जेल से रिहा हुए भाई बीमार हैं। ऐसे में उस्मान ही उनके लिये एक बडा सहारा थे। उस्मान की तमाम कोशिशें बेनजीता हो गईं जब 30 जुलाई की सुबह करीब पौने 5 बजे सुप्रीम कोर्ट की 3 जजों के बेंच ने याकूब की फांसी रोकने के लिये आखिरी अर्जी भी खारिज कर दी।

मुझे विमान में उस्मान की हालत देखकर दुख हुआ, लेकिन याकूब मेमन के साथ मुझे कोई सहानुभूति नहीं है। भले ही आज दुनियाभर में सजा ए मौत के खिलाफ मुहीम चल रही हो, लेकिन मैं फांसी की सजा का समर्थन करता हूं। फांसी भारत में सर्वोच्च सजा है और याकूब के लिये इससे कम सजा नहीं हो सकती थी। याकूब को फांसी की सजा क्यों न हो इसके लिये दी गई तमाम दलीलें मैने पढी हैं, लेकिन ये सच है कि याकूब बेकसूर नहीं था। अगर कोई ये कहता है कि याकूब ने अपने भाई टाईगर के किये की सजा भुगती तो वो गलत है। याकूब अपने परिवार का सबसे पढा लिखा सदस्य था। उसे ये पता था कि उसका भाई मुंबई के लिये कैसी तबाही का इंतजाम कर रहा है। मेमन परिवार के और अपने भाई के कारोबार के बैंक खाते भी याकूब ही संभालता था और इन्हीं खातों के जरिये धमाकों की साजिश के लिये पैसों का लेनदेन हुआ। खुद याकूब के और परिवार के बाकी सदस्यों के धमाकों से पहले यानी कि 9 मार्च 1993 को मुंबई से भागने के हवाई टिकट इन खातों से खरीदे गये थे। याकूब चाहता तो खुद को अपने भाई की साजिश से अलग कर सकता था। वो पुलिस को भाई के खूनी इरादों की जानकारी पहुंचा सकता, लेकिन उसने ऐसा नहीं किया और मुंबई में 257 बेकसूर लोग मारे गये और 750 से ज्यादा लोग इस तरह घायल हुए हैं कि वो फिर पहले की तरह अपनी जिंदगी नहीं गुजार सकते। भारतीय न्याय व्यवस्था ने उसे अपना पक्ष रखने का पूरा मौका दिया। सु्प्रीम कोर्ट ने असमान्य तौर पर देर रात उसके लिये दरवाजे खोले। जब इंसाफ की सबसे बडी संस्था संतुष्ट हो गई कि याकूब माफी के लायक नहीं है तब ही उसे फांसीं पर लटकाया गया। मुझे पता नहीं कि जो लोग याकूब से सहानुभूति जता रहे हैं या उसके लिये आंसूं बहा रहे हैं, उनके ख्यालों में कभी बमकांड के शिकार बने लोग भी आये या नहीं। 1993 के बमकांड से मची तबाही मैने करीब से देखी है। उस दिन काथा बाजार में जिस जगह धमाका हुआ वहां से महज 300 मीटर के फासले पर मेरा पुराना घर था और मैं चंद मिनट पहले ही उस जगह के करीब से गुजरा था। जवेरी बाजार में जहां धमाका हुआ वहां मेरे मामा कुछ कदमों के फासले पर ही मौजूद थे और वे बाल बाल बचे। उन्होने अपने सामने जिस तरह से इंसानी शरीर को अनगिनत टुकडों में फटकर जलते देखा वे दृश्य याद करके आज भी उनकी रूह कांप उठती है। जो लोग कह रहे हैं कि याकूब अपने धर्म की वजह से बच नहीं पाया उन्हें ये भी जानना चाहिये कि आजाद भारत में फांसी पर लटकाये जाने वाले ज्यादातर लोग हिंदू रहे हैं। गांधी का हत्यारा नथुराम गोडसे भी कट्टर हिंदुत्ववादी सोच वाला ही शख्स था, जिसे फांसी दी गई थी।

कोई कहता है कि याकूब की फांसी के साथ मुंबई का बदला पूरा हुआ, कोई कहता है कि मारे गये लोगों के साथ इंसाफ हुआ है, लेकिन मैं उनसे सहमत नहीं हूं।12 मार्च 1993 की साजिश रचने वाले दाऊद इब्राहिम और टाईगर मेमन अब तक कानून की पहुंच से बाहर हैं। असली इंसाफ तब होगा जब ये दोनो फांसीं के फंदे पर झूलेंगे...लेकिन क्या कभी ये मुमकिन हो पायेगा? दाऊद का गुर्गा छोटा शकील तो याकूब के लटकाये जाने के बाद खुलेआम मीडिया को फोन करके धमकी देने की हिम्मत रखता है कि इसके गंभीर नतीजे होंगे।


बुधवार सुबह 6 बजे मैं सोकर उठा था। दिनभर मैने मुंबई में टाईगर मेमन पर बनाई जा रही डॉक्यूमंट्री पर काम किया और शाम 7 बजे की फ्लाईट से नागपुर निकल गया। रातभर नागपुर जेल के बाहर से मैं और गणेश ठाकुर सुबह याकूब की फांसीं होने के बाद तक लाईव करते रहे। विमान में बैठते वक्त मुझे लगातार जागे हुए 29 घंटे बीत चुके थे।मैने सोचा था कि नागपुर से मुंबई के करीब सवा घंटे के सफर के दौरान मैं थोडी देर सो लूंगा, लेकिन आंख बंद करने पर यही तमाम ख्याल आ रहे थे और मैं सो नहीं पाया। विमान के मुंबई में उतरते ही तमाम मुसाफिर उन सीट के पास दौड पडे जहां सुलेमान और उस्मान बैठे हुए थे और उनकी तस्वीरें निकालने लगे। हमारी वजह से इन मुसाफिरों को पता चल गया था कि दोनो याकूब मेमन के रिश्तेदार हैं। तमाम मुसाफिरों को इस बात का सुखद आश्चर्य था कि वे उस विमान से सफर कर रहे थे जिसमें देश के सबसे बडे आपराधिक मुकदमें के दोषी की लाश को फांसी देने के बाद मुंबई लाया जा रहा था। 

Comments

बेहद संतुलित और सही रिपोर्ट
एक क्राईम रिपोर्टर जो इस केस के हर पहलू से वाकिफ़ है, का नजरिया जानकर अच्छा लगा

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