देवरानी-जेठानी की खटपट में लटक गया याकूब !
किसी संयुक्त परिवार में
अगर देवरानी जेठानी एक साथ रह रहीं हैं तो उनके बीच झगडा और मनमुटाव होना आम बात
है। वे अक्सर अपने अपने पतियों से एक दूसरे की शिकायत करतीं हैं और कान भरतीं
हैं...लेकिन देवरानी-जेठानी के बीच घर में अक्सर होने वाली ये छोटी मोटी खटपट किसी
को फांसीं के फंदे तक भी पहुंचा सकती है, ये कहानी आपने आज तक नहीं सुनी होगी।
12 मार्च 1993 को हुए
मुंबई बम धमाकों से पहले मुंबई के माहिम इलाके की अल हुसैनी इमारत में
टाईगर मेमन अपने याकूब समेत अपने बाकी छोटे भाईयों और माता पिता के साथ एक ही घर
में रहता था। जानकारी के मुताबिक टाईगर मेमन की पत्नी शबाना और याकूब मेमन की
पत्नी राहीन में नहीं जमती थी और अक्सर उनमें खटपट होती रहती थी। मुंबई बमकांड की
साजिश के तहत टाईगर मेमन ने याकूब मेमन समेत परिवार के सारे सदस्यों को भारत से भगा
दिया।सभी लोग पहले दुबई गये, फिर सऊदी और उसके बाद पाकिस्तान। बताते हैं कि इस
दौरान भी देवरानी-जेठानी के बीच कलह होती रहती थी। याकूब की पत्नी आये दिन टाईगर
और उसकी पत्नी के बारे में याकूब से शिकायत करती रहती – “तुम्हारे भाई के चक्कर
में हमें ये दिन देखना पड रहा है। हम अपने नाते रिश्तेदारों से दूर हो गये हैं। न
किसी की शादी-ब्याह में जा सकते हैं, न मैयत में। ये भी कोई जिंदगी है। तुम्हारे
भाई के टुकडों पर अब पलना पडेगा”। अपनी पत्नी के मुंह से रोज निकलने वाले ये
शब्द याकूब को खूब चुभते थे। देवरानी-जेठानी के बीच रोज होने वाली खटपट से वो तंग
आ चुका था। याकूब ने भारत वापस लौटने का जो फैसला किया उसमें इस कलह ने एक बडी
भूमिका निभाई। वो इससे छुटकारा चाहता था और उसने टाईगर मेमन से बगावत करके वापस भारत लौटने का फैसला किया।
याकूब मेंमन, भाई टाईगर
और अयूब मेमन को कराची में छोड कर नेपाल के रास्ते अपनी पत्नी राहीन, बाकी भाईयों,
उनकी पत्नियों और माता-पिता के साथ भारत वापस लौट आया। नई दिल्ली रेल स्टेशन पर
उसकी गिरफ्तारी दिखाई गई। याकूब को उम्मीद थी कि चूंकि बमकांड की साजिश में उसकी
ज्यादा भूमिका थी नहीं इसलिये कुछ साल बाद वो जेल से छूट जायेगा। दिल्ली में
गिरफ्तारी के बाद उसके, उसकी पत्नी राहीन, बाकी भाईयों और परिजनों के खिलाफ टाडा के तहत मुकदमा चलाया गया। पत्नी राहीन
को तो अदालत ने छोड दिया लेकिन टाडा अदालत ने याकूब को बमकांड की साजिश का दोषी
मानते हुए उसे फांसीं की सजा सुना दी। 30 जुलाई 2015 को सुबह 7 बजे के करीब नागपुर जेल में उसे फांसीं
पर लटका दिया गया। 30 जुलाई याकूब के जन्मदिन की भी तारीख थी।
मेमन परिवार के एक करीबी
सदस्य का कहना है कि अगर देवरानी-जेठानी में रोज की खटपट न होती तो शायद याकूब
भारत आने का मन नहीं बनाता। न वो अपने भाई टाईगर की तरह पकडा जाता और न फांसीं पर
लटकाया जाता।
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