मुंबई पुलिस का गैंगवार
गैंगवार। मतलब अंडरवर्लड की काली दुनिया के बीच गिरोहों की आपसी जंग...लेकिन ये गैंगवार सिर्फ अब अंडरवर्लड में ही नहीं होता। अंडरवर्लड के दुश्मन यानी कि पुलिस महकमें में भी एनकाउंटर स्पेलिस्ट अफसरों के बीच चलता है आपसी गैंगवार।हाल ही में मुंबई पुलिस के एनकाउंटर स्पेसलिस्ट अफसर प्रदीप शर्मा की वर्दी उतारे जाने के पीछे इस पुलिसिया गैंगवार की भी एक भूमिका मानी जा रही है।
मुंबई की सडके कई बार खून से सन चुकीं हैं, कई बार यहां जीते जागते इंसान ढेर में बदले गये हैं, कई बार यहां हो चुकी है गोलियों की बौछार। वजह रही है गैंगवार। अंडरवर्लड पर दबदबा हासिल करने के लिये गिरोहों के बीच चलने वाला खूनी खेल। पहले ये गैंगवार दाऊद इब्राहिम और अरूण गवली के गिरोहों के बीच चलता था और फिर छोटा राजन का गिरोह दाऊद का नया दुश्मन बनकर उभरा। सभी एक दूसरे के खून के प्यासे थे।दाऊद इब्राहिम, छोटा राजन, अरूण गवली या फिर अश्विन नाईक भले ही आपस में भी लड मरें लेकिन इन सभी की एक ही दुश्मन है-मुंबई पुलिस। पर खुद क्या मुंबई पुलिस भी गैंगवार से अछूती है। मुंबई के तमाम क्राईम रिपोर्टर भी जानते हैं कि मुंबई पुलिस में भी पिछले डेढ दशक से एक गैंगवार चल रहा था दो एनकाउंटर स्पेसलिस्ट अफसरों के बीच।
प्रदीप शर्मा उर्फ बाबा- रविवार को पुलिस सेवा से बर्खास्तगी से पहले ये 112 एनकाउंटर कर चुके थे। एक एनकाउंटर स्पेसलिस्ट अफसर के तौर पर पहचाने जाने वाले शर्मा पुलिस महकमें में होने वाले गैंगवार के भी अहम खिलाडी रहे हैं। 1983 में इन्होने विजय सालस्कर उर्फ महाराज के साथ पुलिस भर्ती की परीक्षा पास की और सब इंसपेक्टर नियुक्त हुए। 90 के दशक की शुरूवात तक दोनों ने साथ काम किया। कई गुनहगारों को यमलोक पहुंचाया और कईयों को सलाखों के पीछे, लेकिन शर्मा और सालस्कर का साथ ज्यादा दिनों तक नहीं टिका। दोनों में तमाम बातों को लेकर मनमुटाव शुरू हो गया दोनो ने अलग होकर अपने खास अफसरों के अलग गुट बनाये। आला अफसरों के पास दोनो गिरोह एक दूसरे के कान भरते, एक दूसरे के खबरियों का एनकाउंटर करते या एक दूसरे के करीबियों को सलाखों के पीछे पहुंचाते। ये भी बताया जाता है कि दोनों अपने दुश्मन गुटों के फोन भी टेप करते थे। जब सालस्कर और शर्मा अलग हुए तो 1995 से प्रदीप शर्मा ने सब इंस्पेकटर दया नायक को साथ ले लिया। दोनो ने मिलकर करीब 83 एनकाउंटर किये। इस बीच शर्मा की टीम में एंट्री हुई सचिन वाजे की। इसी दौरान शर्मा की टीम में फूट आई। वाजे बमकांड आरोपी ख्वाजा यूनूस की हत्या के मामले में गिरफ्तार हुए और उसी के चंद दिनों बाद दया नायक भी शर्मा से मनमुटाव के चलते अलग हो गये। बताते हैं कि जब नायक आये से ज्यादा संपत्ति के मामले में गिरफ्तार हुए तो शर्मा से उन्हे कोई मदद नहीं मिली।
इस पुलिसिया गैंगवार का एक और पहलू था। जो भी आईपीएस अफसर क्राईम ब्रांच का मुखिया बनता वो अपने कास एनकाउंटर स्पेलिस्ट अफसरो को उसकी मनचाही पोस्टिंग देता था। न केवल क्राईम ब्रांच की प्राथमिकताएं इन एनकाउंटर स्पेसलिस्ट अफसरों की सलाह पर तय की जातीं बल्कि सभी अहम पदों पर ट्रांसफर्स भी इन्ही की सिफारिश पर होते।प्रदीप शर्मा पुणे के पुलिस कमिश्नर डॉ सत्यपाल सिंह के काफी करीबी माने जाते रहे हैं, जबकि विजय सालस्कर क्राईम ब्रांच के मौजूदा प्रमुख राकेश मारिया के। क्राईम ब्रांच की सबसे ताकतवर ईकाई होती है एंटी एक्टोर्शन सेल। सत्यपाल सिंह के वक्त इस सेल के मुखिया शर्मा थे तो अब मारिया के वक्त हैं विजय सालस्कर। शर्मा की बर्खास्तगी को मुंबई पुलिस के गलियारों में सालस्कर खेमें की जीत के तौर पर भी देखा जा रहा है।
मुंबई की सडके कई बार खून से सन चुकीं हैं, कई बार यहां जीते जागते इंसान ढेर में बदले गये हैं, कई बार यहां हो चुकी है गोलियों की बौछार। वजह रही है गैंगवार। अंडरवर्लड पर दबदबा हासिल करने के लिये गिरोहों के बीच चलने वाला खूनी खेल। पहले ये गैंगवार दाऊद इब्राहिम और अरूण गवली के गिरोहों के बीच चलता था और फिर छोटा राजन का गिरोह दाऊद का नया दुश्मन बनकर उभरा। सभी एक दूसरे के खून के प्यासे थे।दाऊद इब्राहिम, छोटा राजन, अरूण गवली या फिर अश्विन नाईक भले ही आपस में भी लड मरें लेकिन इन सभी की एक ही दुश्मन है-मुंबई पुलिस। पर खुद क्या मुंबई पुलिस भी गैंगवार से अछूती है। मुंबई के तमाम क्राईम रिपोर्टर भी जानते हैं कि मुंबई पुलिस में भी पिछले डेढ दशक से एक गैंगवार चल रहा था दो एनकाउंटर स्पेसलिस्ट अफसरों के बीच।
प्रदीप शर्मा उर्फ बाबा- रविवार को पुलिस सेवा से बर्खास्तगी से पहले ये 112 एनकाउंटर कर चुके थे। एक एनकाउंटर स्पेसलिस्ट अफसर के तौर पर पहचाने जाने वाले शर्मा पुलिस महकमें में होने वाले गैंगवार के भी अहम खिलाडी रहे हैं। 1983 में इन्होने विजय सालस्कर उर्फ महाराज के साथ पुलिस भर्ती की परीक्षा पास की और सब इंसपेक्टर नियुक्त हुए। 90 के दशक की शुरूवात तक दोनों ने साथ काम किया। कई गुनहगारों को यमलोक पहुंचाया और कईयों को सलाखों के पीछे, लेकिन शर्मा और सालस्कर का साथ ज्यादा दिनों तक नहीं टिका। दोनों में तमाम बातों को लेकर मनमुटाव शुरू हो गया दोनो ने अलग होकर अपने खास अफसरों के अलग गुट बनाये। आला अफसरों के पास दोनो गिरोह एक दूसरे के कान भरते, एक दूसरे के खबरियों का एनकाउंटर करते या एक दूसरे के करीबियों को सलाखों के पीछे पहुंचाते। ये भी बताया जाता है कि दोनों अपने दुश्मन गुटों के फोन भी टेप करते थे। जब सालस्कर और शर्मा अलग हुए तो 1995 से प्रदीप शर्मा ने सब इंस्पेकटर दया नायक को साथ ले लिया। दोनो ने मिलकर करीब 83 एनकाउंटर किये। इस बीच शर्मा की टीम में एंट्री हुई सचिन वाजे की। इसी दौरान शर्मा की टीम में फूट आई। वाजे बमकांड आरोपी ख्वाजा यूनूस की हत्या के मामले में गिरफ्तार हुए और उसी के चंद दिनों बाद दया नायक भी शर्मा से मनमुटाव के चलते अलग हो गये। बताते हैं कि जब नायक आये से ज्यादा संपत्ति के मामले में गिरफ्तार हुए तो शर्मा से उन्हे कोई मदद नहीं मिली।
इस पुलिसिया गैंगवार का एक और पहलू था। जो भी आईपीएस अफसर क्राईम ब्रांच का मुखिया बनता वो अपने कास एनकाउंटर स्पेलिस्ट अफसरो को उसकी मनचाही पोस्टिंग देता था। न केवल क्राईम ब्रांच की प्राथमिकताएं इन एनकाउंटर स्पेसलिस्ट अफसरों की सलाह पर तय की जातीं बल्कि सभी अहम पदों पर ट्रांसफर्स भी इन्ही की सिफारिश पर होते।प्रदीप शर्मा पुणे के पुलिस कमिश्नर डॉ सत्यपाल सिंह के काफी करीबी माने जाते रहे हैं, जबकि विजय सालस्कर क्राईम ब्रांच के मौजूदा प्रमुख राकेश मारिया के। क्राईम ब्रांच की सबसे ताकतवर ईकाई होती है एंटी एक्टोर्शन सेल। सत्यपाल सिंह के वक्त इस सेल के मुखिया शर्मा थे तो अब मारिया के वक्त हैं विजय सालस्कर। शर्मा की बर्खास्तगी को मुंबई पुलिस के गलियारों में सालस्कर खेमें की जीत के तौर पर भी देखा जा रहा है।
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... आप अपने काम को इसी परकार करते रहे ये हमारी दुआ है...