छोटा राजन और जे.डे का रिश्ता: देशप्रेम, दोस्ती और दुश्मनी
मुंबई के जिन पत्रकारों से अंडरवर्लड डॉन छोटा राजन अक्सर संपर्क में रहता था उनमें से एक थे मिड डे अखबार के जे.डे। जहां तक मेरी जानकारी है डे और छोटा राजन करीब पिछले 12 सालों से एक दूसरे से बातचीत करते थे। अक्सर जब डे अपने साथियों के साथ रहते और छोटा राजन का फोन आता तो वे अपने साथियों से भी उसकी बात करा देते। साथी खुश हो जाते कि डे ने इतने बडे डॉन से बात करवा दी। राजन भी डे के साथियों को कहता- “कुछ काम हो तो बोलना।“ डे और छोटा राजन के बीच बड़ा ही दोस्ताना रिश्ता था और अगर ये रिश्ता पत्रकार और अपराधी के बीच जानकारी हासिल करने के लिये जो रिश्ता होता है उसकी सीमा लांघ चुका हो तो मुझे कोई आश्चर्य नहीं होगा। जे.डे. छोटा राजन से प्रभावित थे। वे इस बात को मानते थे कि राजन वाकई में देशभक्त डॉन है। छोटा राजन ने 1994 में दाऊद गिरोह से अलग होते वक्त कहा था कि 1993 में मुंबई बम धमाके करने वाला दाऊद इब्राहिम देशद्रोही है और इसलिये वो उसके गिरोह को छोड रहा है। राजन ने ऐलान किया कि वो देशभक्त है और दाऊद गिरोह का खात्मा ही उसकी जिंदगी का मिशन बन चुका है। अपने आप को देशभक्त दिखाने के लिये राजन जब भी किसी को फोन करता तो उसका अभिवादन होता- “जयहिंद”।
एक बार फोन पर बात करते हुए मेरी और जे.डे की बहस हो गई। मैने जे.डे से कहा कि दाऊद इब्राहिम तो देश का गद्दार है ही लेकिन छोटा राजन भी ढोंगी है। देशप्रेम का ढोंग करके वो अपने ही देश के लोगों से वसूली करता है, तरह तरह के अपराध करता है और अपना गिरोह चलाता है। देशप्रेमी होने का तो सिर्फ उसने मुखौटा पहन रखा है। जे.डे को ये बात बुरी लगी। डे ने छोटा राजन का बचाव किया और कहा –“भले ही राजन बहुत बडा अपराधी हो लेकिन वाकई में वो देश से प्यार करता है। उसके कई शूटरों से मैं बात कर चुका हूं। देश भकित उनकी रग रग में भरी है। वो लोग लगातार दाऊद तक पहुंचने की कोशिश कर रहे हैं और उन्हें यकीन है कि वो दाऊद का काम तमाम करके ही रहेंगे। राजन ने एक बार मुझे कहा था कि दुबई में मेरी भी इज्जत थी। बंगला था,शॉफर के साथ आलीशान कार थी..लेकिन मैने 1993 के बाद वो सब अपने देश के लिये छोड दिया। चाहता तो मैं भी ऐश से रहता”। जे.डे से उनकी हत्या के पहले मेरी जो आखिरी बातचीत हुई थी उसमें भी उन्होने राजन का जिक्र किया था। डे ने मुझे बताया कि पाकमोडिया स्ट्रीट में हुए शूटआउट के बाद छोटा राजन का उन्हें फोन आया। डे ने बताया कि इस शूटआउट से राजन काफी खुश था। डे के मुताबिक उनसे बातचीत में राजन ने एक फिल्मी स्टाईल का डायलॉग भी मारा- “बॉस अब तो दुख में ही सुख मना रहा हूं”।
आज जब मुंबई पुलिस ये कह रही है कि जे.डे को छोटा राजन ने मरवाया तो ये बात मेरे लिये बहुत ही चौंकाने वाली है। क्या ये वही छोटा राजन है जिसकी जे.डे तारीफ किया करते थे, क्या ये वही राजन है जो आये दिन किसी दोस्त की तरह जे.डे से घंटो फोन करके बतियाता था, क्या ये वही राजन है जो जे.डे की नजरों में एक देशभक्त डॉन था? अगर ये वही डॉन है तो फिर सवाल उठता है कि अचानक ऐसा क्या हो गया जो डे का जिंदा रहना राजन को भारी लगने लगा? डे का जीना राजन के लिये क्यों खतरा बन गया? डे ने राजन का क्या बिगाडा था या बिगाडने वाला था जो उसकी हत्या करवानी पडी? उम्मीद है सच देर सबेर जरूर बाहर आयेगा... हो सकता है वो कडवा भी हो...
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हरिओम गर्ग
संपादक - सांध्य दैनिक "जांबाज़"
बीकानेर